Sarvajanik Karyakram Date 9th December 1973 : Place India Public Program Type : Speech Language Hindi CONTENTS | Transcript | 02 - 12 Hindi English Marathi || Translation English Hindi Marathi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK श्री दत्त जयंती है। आज का दिन बहुत बड़ा है। इन्ही की आशीर्वाद से मैं सोचती हूँ कि ये आज का दिन आया हुआ है, जो आप लोगों में सहजयोग पल्लवित हुआ। सारे गुरुओं के गुरु, आदिगुरु श्रीदत्तमहाराज, उनका आज महान दिवस है। उनको मैं नमस्कार करती हूँ। उन्होंने मुझे अनेक जन्मों में सहजयोग पर बहुत सिखाया है। और उसी के फलस्वरूप इसी जन्म में भी मैं कुछ कार्य कर सकती हूँ। 'गुरुब्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ।' आद्यशक्ति ने जब सब सृष्टि की रचना की। सारी सृष्टि की रचना करने के बाद जैसे एक राजा अपना राज्य फैलाता है और उसके बाद भेष बदल के इस संसार को देखने आता है, इस तरह आदिशक्ति भी बार बार संसार में अवतरित हुई। लेकिन चाहे शक्ति कितनी भी ऊँची हो, उसे एक मनुष्य गुरु की जरूरत है। मनुष्य का स्थान उस शक्ति से ही है। अगर शक्ति को मानव रूप धारणा करनी है, तो कभी उसे पिता के स्वरूप, कभी उसे भाई के विष्णु- महेश इन देवों से जब सारी सृष्टि की रचना की, उस वक्त इस संसार में फँसे हये लोगों को बाहर निकालने का विचार स्वरूप, कभी उसे बेटे के स्वरूप पा कर ही वो संसार में आयी। सर्वप्रथम ऐसा ही समझें कि ब्रह्मा- आदिशक्ति के मन में आया, कि ये तीन तत् अगर किसी तरह से एकसाथ जूट जायें और उनमें श्री गणेश जी की बालकता, उनकी अबोधिता, उनका इनोसन्स उतर जायें, तो हो सकता है कि एक बहुत बड़ा कार्य करने वाले गुरु इन से निर्माण हो। सती अनसूया के रूप में उनका साक्षात् हुआ। ये एक ही ऐसी सती संसार में हैं कि जिसने इन्सान के तारण का विचार किया। ये तीनों बालक अनसूया के पास, अनसूया का अर्थ है कि जिसमें असूया नहीं। जो किसी से मत्सर नहीं करती। जो सर्वथा प्रेम होता है, उसमें मत्सर आदि, क्रोध आदि ऐसे नगण्य, क्षुद्र विचारों का कहाँ से स्थान है। जिस में कोई भी असूया नहीं, ऐसी अनसूया। इस की परीक्षा लेने के लिये ये तीनों भी, ऐसा कहा जाता है, इनके दरवाजे गये और उस वक्त उन्होंने अपने तेज बल से, ये तेज बल क्या था ? कि यही माँ का प्रेम अत्यंत..., शक्तिशाली माँ का प्रेम जो उन पर बरस पड़ा और वो छोटे बच्चे हो गये। उन्हीं का एकाकार स्वरूप श्रीदत्तमहाराज है। एक अजीब सी विभूति हैं। इसका की कितना भी वर्णन किया जायें वो कम है और समझाया जायें वो भी समझ से परे। ऐसे त्रिगुणों से भरे ह्ये श्रीदत्तमहाराज आदिगुरु के रूप में संसार में आये और उन्होंने अनेक बार इसकी शिक्षा दी कि भवसागर को किस तरह से पार किया जायें । कल मैंने आपसे बताया है कि हम संसार में अनेक धर्म बना कर के लड़ाई कर रहे हैं। इसी एक श्रीदत्त के अवतार अनेक बार संसार में आये। उनमें से, जैसे कि मैंने आप से कल बताया था, राजा जनक, जो कि जानकी जी के पिता थे। वे भी और कोई नहीं थी, बल्कि इन्हीं दत्तात्रेय जी के अवतार थे। उसके बाद, मच्छिंद्रनाथ, आपने नाम सुना होगा। वे भी उन्हीं के अवतार हैं। उसके बाद झोराष्ट्र, जो तीन बार संसार में आये। ये भी उन्हीं के अवतार हैं। इसके बाद मोहम्मद साहब, जो कि साक्षात् उन्हीं के अवतार थे और जब उनसे बहुत बार पूछा कि, Original Transcript : Hindi 'भाई, तुम से भी तो पहले कोई आये होंगे?' तो उन्होंने कहा कि, 'आये थे एक मोहम्मद साहब ।' फिर उनसे पूछा कि, 'उससे पहले कौन था ?' कहने लगे कि, 'एक मोहम्मद साहब ।' मोहम्मद माने जो प्रेज होता है। जिसकी प्रेज की जायें । जो स्तुतिपात्र है । वही स्तुतिपात्र है जो संसार का तारण करता है। वही सारे मोहम्मद जो आये थे, वही सारे दत्तात्रेय जी बार बार संसार में आते हैं। उसके बाद नानक, गुरु नानक। उनकी आप अगर बानी कहे, उनकी आप अगर बातें सुने तो आपको आश्चर्य होगा, कि उन्होंने हर बार सहज में ही बात की। उन्होंने ही कहा कि, सहज समाधि लागो। उन्होंने ही कहा है कि, 'काहे रे बन खोजन जायीं, सदा निवासी, सदा अलेपा तो हे संग समायी। उस पे मध्य जो बास बसत है, मुकुर माही जब छायीं, तैसे ही हरि बसे निरंतर, घट ही खोजो भाई ।' घट ही खोजो, अन्दर ही है। अन्दर ही उसे प्राप्त करो। हम तो कविता गा रहे हैं। गाना गा रहे हैं। जो उन्होंने हमें डिस्क्रीप्शन दिया था उसे रटे जा रहे हैं। हृदय के ही अन्दर बसे हुये इस परम तत्त्व को, खोजने की बात। अनादि काल से ये आदिगुरु बार बार जन्म संसार में ले कर के.... । मोहम्मद साहब की जो लड़की थी, कल भी मैंने बताया है कि इसके बात शिया जाति की शुरूआत हुई। मुसलमानों में शिया नाम की जति है। सिया से आया हआ शब्द शिया हो गया। सिया माने सीताजी , आप जब यूपी में जायें तो सीता जी के लिये कहते हैं सिया जी। सियावर रामचन्द्र की जय! तब सिया का नाम लेते हैं। वो स्वयं सीताजी थी, आदिशक्ति थी। और उनके जो दो बेटे हुये थे, हसेन और हुसेन। जिन्होंने कितने ही दुष्टों का नाश किया। उसके बाद तंग आ कर के जब वो भी मर गये। उसके बाद दूसरे जन्म में उन्होंने सोचा कि अहिंसा को उन्होंने प्रस्थापित किया जायें। हिंसा से कुछ काम नहीं बना। एक नया एक्सपरिमेंट करने के लिये, बुद्ध और महावीर के रूप में जन्म लिया। एक्सपरिमेंट ही होते हैं। नानक साहब के बाद एक पचास-साठ साल पहले, अपने इस महाराष्ट्र में ही शिर्डी के साईंबाबा, ये भी साक्षात् दत्तात्रेय जी के ही अवतार थे। इसका आपको अगर प्रमाण के चाहिये, अगर आप पार हो जायें, और इसके बाद आप किसी पे ही हाथ रख कर देखिये तो एक हो तरह वाइब्रेशन्स दिखेंगे। वाइब्रेशन्स से ही आप सब को जान सकते हैं । जैसे आप के पास आँख होना जरूरी है, किसी की आप आकृति देख रहे हैं, उसका रंग देखिये , इसी तरह से आपके पास वाइब्रेशन्स आने की जरूरत हैं जिससे आप संसार के सब गुरुओं को जान सके। और जान सके कि कौन सच्चा गुरु हैं और कौन झूठा गुरु। कौन उस आदिगुरु दत्तात्रेय जी के साक्षात् हैं। कहने को तो आज कल हजारों गुरु संसार में आ गये। किसी के कहने से कोई गुरु नहीं होता। और किसी को मान भी लेने से वो गुरु नहीं होता। गुरु शब्द ही का अर्थ बहुत बड़ा है। इसको समझ लेना चाहिये। आज इसी पे में आज बातचीत करना चाहती हूँ कि गुरु कौन और कौन गुरु नहीं। गुरु शब्द का अर्थ ही ये है कि जो हमसे बड़ा है। जो हमसे उँचाई पे बैठा हुआ है। जैसे उँचाई पे बैठा हुआ पानी अकस्मात नीचे आ जाये। वो अपनी सतह को ढूँढने के लिये, अपने सतह पे सब को लाने के लिये हमेशा लालायित है। आप पानी को किसी उँचाईं पर रख दीजिये, वो चाहेगा कि उसी उँचाईं पे सब को लाऊँ। यही गुरु का अर्थ । ऐसा जो नहीं जो गुरु को नहीं। हमसे उँचा वो हर मामले में होना है। एक ही मामले में नहीं। इसलिये आजकल जो गली गली, रास्ते रास्ते पर हम लोग गुरुओं को मान रहे हैं, उनको याद रखना चाहिये, कि गुरुओं की हजारों .....। जो गुरु परम तत्त्व की बात करते हैं वो ही साक्षात् गुरु। 3 Original Transcript : Hindi जो परमात्मा की बात करते हैं और परमात्मा की ओर ही आपको उठाते हैं वही गुरु हैं। जो लोग आप से रुपया- पैसा लेते हैं, वो गुरु नहीं। जो अपनी वाणी का रुपया लेते हैं वो गुरु कभी भी नहीं हो सकता। क्योंकि ये वाणी परमात्मा से आयी हुई बहमूल्य चीज़ है। इस की कोई भी किमत आप दे नहीं सकते। जिस दिन आप इसकी किमत दे सके, ये परमात्मा की चीज़ नहीं। आप परमात्मा को बाजार में जा कर खरीद नहीं सकते। याद रखिये, आज हम लोग इस तरह के हजारों लोगों के सामने खड़े हैं, जो परमात्मा के नाम पर पैसा कमायें। इससे बढ़ के अधमता और नीचता संसार में कुछ भी नहीं है। परमात्मा के पास एक ठोकर के बराबर भी संसार का कोई भी सामान, कोई भी कोई भी चीज़ अगर हो तो उसे हम मान सकते हैं कि परमात्मा को दें। वस्तु, जैसे कि हमारे घर में एक साहब आये थे, बड़े भारी महान गुरु अपने को बना कर के। और मुझ से कहने लगे कि, 'माताजी, आप को तो घर में .. हैं और आप तो साधारण गृहिणी जैसी रह रही हैं। तो आप कैसे परमात्मा की बात करे? मैंने तो ये त्यागा, मैंने तो वो त्यागा, मैंने तो ये छोड़ा।' मैंने उन से कहा कि, 'वाकई तुम अगर त्यागना जानते हो, तो तुम ये भी जान लो कि इस में से जो भी चीज़ तुम सोचो कि मेरे प्रभु के चरणों के धूल के बराबर भी है, उस के कणों के भी बराबर है, वो उठा के ले जाओ। लेकिन तौलना बराबर।' इधर उधर देखा उन्होंने। ये वो देखा। फिर वो सकपका गयें । मैंने कहा, 'क्यों ? कोई चीज़ नहीं मिली।' कहने लगे, 'इसके बराबर तो कोई भी नहीं।' फिर मैंने कहा उनसे कि, 'तुमने छोड़ा ही क्या ? तुमने क्या छोड़ा, जिसका झंडा सुबह-शाम घुमा कर के और काषाय वस्त्र पहन कर के और ऊपर में बाल मुंडवा कर के दुनिया भर में चिल्लाते फिर रहे हो । क्या छोड़ा तुमने यही पत्थर। ये मिट्टी। असल में सहजयोग इसीलिये घर-गृहस्थी में बैठे ह्ये साधारण लोगों में ही पनपता है। जो अपने झंडे गाड़ते हैं उनमें कभी भी सहजयोग नहीं आ सकता। जो लोग सहज, सरल भाव से करते हैं। परमात्मा के दिये हये ऐश्वर्य में, उनके आनन्द और सुख में सहज से प्रेमपूर्वक रहते हैं, ऐसे ही लोग, ऐसे ही मध्य स्थिति के लोग परमात्मा को पा सकते हैं। गुरु का मतलब अब आपको समझना चाहिये कि, जो लोग काषाय वस्त्र पहन कर के पैसा इकठ्ठा करते हैं, वो लोग कभी भी गुरु नहीं । जिनके पास टूटी हुई सायकलें थीं वो आज इम्पाला में घूम रहे हैं, वो कभी भी गुरु नहीं हो सकते। जो आदमी परमात्मा को पाया हुआ है वो चाहे जमीन पे सो जायें और चाहे वो महलों में सो जाये , आराम से। इसलिये जनक राजा का आपको मैं उदाहरण देती हूँ। जनक राजा के पास में नचिकेता कर के एक बड़ा भारी गया। पहले तो वो शंका से व्याकुल था। उसने अपने गुरु से कहा कि 'ये एक गृहस्थ में हैं, ये राजा है, इसके यहाँ तुम क्यों जाते हो? इसके आगे तुम क्यों झुकते हो? इसके चरण क्यों छूते हो? ये तो गृहस्थी आदमी है।' तो उन्होंने उनको कहा कि, 'तुम राजा जनक के यहाँ जाओ और उनके यहाँ रहो।' आप जानते हैं कि उनको विदेही कहा जाता है। नचिकेता जब उनके साथ जा के रहा। उन्होंने देखा कि उनके यहाँ इतना ऐश्वर्य है, इतना पैसा है, लोग खाना-पीना खा रहे हैं, आराम से रह रहे हैं। राजा सब खाना खाते हैं, घूमते हैं, फिरते हैं । बाल- बच्चे वाले आदमी, कैसे हो सकता है परमात्मा को जानना। दूसरे दिन उन्होंने कहा, 'मैं तो जा रहा हूँ। अभी इसी वक्त मैं चला जा रहा हूँ। मुझे यहाँ रहने का नहीं।' अच्छा, चलो, पहले नहाने तो चलो।' नदी पे नहाने गये। उनको अपने साथ | 4 Original Transcript : Hindi शरयू नदी पर नहाने ले गये। नदी में नहाते वक्त एकदम से किसी ने आ के बताया कि, 'हे राजा, तेरे तो घर में आग लगी है। राजवाडे में सारी आग लगी हुई है।' राजा जनक ने कहा कि, 'लगने दो। अभी तो मैं ध्यान में हूँ।' हँस के कहा। उसके बाद लोगों ने कहा, 'तुम्हारे सब घर वाले भाग गये। आग तुम्हारी तरफ आ रही है। तो उन्होंने कहा, 'जाने दो, अभी तो मैं ध्यान में हूँ।' उसके बाद उन्होंने कहा कि, 'अरे भाई, आग यहाँ तक आ गयी। तुम्हारे बाहर आभूषण और वस्त्र पड़े हये हैं ये भी चले जायेंगे।' वहाँ जो रखे थे वो भी भाग गये । ये नचिकेत अन्दर जो नहा रहे थे। उनके एक-दो जो कपड़े बाहर पड़े हये थे। उन्होंने सोचा कि 'ये अगर जल जायें तो मेरा क्या हाल होगा?' तो भागे बाहर । उन्होंने अपने वो कपड़े उठा लिये। तो भी ये ध्यान में हैं। जब वो लौट के आये, उनको बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने इनसे पूछा कि, 'राजा, आपको कोई चिंता नहीं है ? क्या आपके कपड़े आदि सब कुछ जल जाते| और फिर आप क्या ऐसे ही घूमते ?' तब उन्होंने कहा कि, 'जो मिथ्या है वो मिटने ही वाला है। वो कोई बताने की जरूरत नहीं। जब तक है रहने दीजिये और नहीं है तो जाने दीजिये।' यही बात सच है। जो मिथ्या को मिथ्या गुरु नहीं समझते हैं, उनके पास आप क्या ढूँढने जा रहे हैं? हमारे ससुराल में एक किस्सा है, कि एक बार ऐसा हुआ कि बाराती आये। अब बारातिओं ने कहा कि, 'आप हमारे लिये कुछ ऐसी व्यवस्था करें कि हम दहीबड़ा खायें ।' बारातिओं के जरा नखरे होते हैं। और जाड़े के दिनों में लोगों ने कहा कि, 'भाई, इस वक्त दहीबड़ा बनाना बहुत मुश्किल हैं। क्योंकि जाड़े में दहीबड़ा शाम के वक्त बनाया नहीं जाता। 'कम से कम तो दहीबड़ा खायें। इसी वक्त लाईये आप दहीबड़ा।' एक बाबाजी वहाँ रहते थे। उनका पता चला। उन्होंने बाबाजी को बुलाया कि, 'भाई, आप किसी तरह इंतजाम करो।' वो कहने लगे, 'मँगवा तो दूँगा, लेकिन उसके बाद मैं रहने वाला नहीं हूँ।' 'अच्छा ठीक है, मँगवा दीजिये।' उन्होंने एक खिड़की बंद कर ली, दूसरी खिड़की बंद कर लीं। दरवाज़ा बंद कर दिया। उसके बाद कहा कि, 'देखो, आ गया आपका दहीबड़ा। खाईये।' वहाँ सब दहीबड़े आ गये। लोगों ने दहीबड़ा खाना शुरू कर दिया। बड़े खुश हुये। बाबाजी भाग गये। रातोरात बाबाजी जान बचा कर भाग गये। लोगों को समझ में नहीं आया कि बाबाजी क्यों भागे? दूसरी दिन सबेरे, | यहाँ माँग लोग होते हैं, एक जाति होती है, जो आती है, खाना - वाना सब बटोर कर ले जाती है। वो आयें और उन्होंने देखा बर्तन वगैरे को, कहने लगे, 'अरे, हमारे कुल्हड उठा के कौन ले के आया? ये तो हमारे कुल्हड थे। कौन उठा के लाये?' वो जो विवाह था, संपन्न तो हुआ था। लड़की बिदा हो गयी| नहीं तो कोई लड़की को भी बिदा न लेता। वजह ये थी की सब लोग बहुत नाराज़ हो गये। कहने लगे कि ये कौन लेकर के आया। हमारे पूर्वजों में, समझ लीजिये हमारे पिता की तरह मैं भी इस चीज़ों में विश्वास ही नहीं करती थी| इसे भानामती कहा जाता था महाराष्ट्र में पहले। ऐसी चीज़ों में कोई भी विश्वास ही नहीं करता था, कि ऊपर से कोई चीज़ चली आयी और उन्होंने दहीबड़े खा लिये। अब क्या परमात्मा कोई धंधा नहीं दहीबड़े खिलाने के सिवाय? आप लोगों को भी सोचना चाहिये कि आप लोगों को दहीबड़े खिलाने का ही उनका एक धंधा बचा हुआ है। जब आप किसी को इतने गुरु बनाते हैं कि वो आपको दो सौ रुपया पकड़वा देते हैं। मैं कहती हूँ कि ऐसे ही इतने दाता लोग अगर हैं तो इस देश का इतना इकोनॉमी प्रॉब्लेम्स ही सॉल्व कर दीजिये। सबको दीजिये। घडियाँ मँगवाते हैं स्वित्झर्लंड से बनी हुई। एक भगवान से बनी हुई घड़ी मँगवा दे तो मान लें। इस चीज़ को सोच लेना चाहिये कि हम 5 Original Transcript : Hindi लोग किस चीज़ को पाना चाहते हैं? उसी परम को पाना चाहते हैं । पर आप की ही तो खोज इन्हीं जड़ वस्तुओं में हैं। इन्हीं पत्थरों में हैं। इसलिये आप इन लोगों को गुरु मानते हैं। रुपया भी जाता है, पैसा भी जाता है। जब आपका सब पैसा निकल जाता है, तब आप मेरे पास आते हैं। कल ही एक स्त्री आयी थी आप ने देखा था, किस तरह से नाच रही थी, कूद रही थी। मैंने कहा, 'क्यों आयी भाई?' कहने लगी, 'क्या करें अब तो हम ऐसे हो गये।' मैंने कहा, 'चाहे लोग पागल तुम्हें बनायें और पागलखाना मैंने खोल के रखा है। तुम वहाँ क्या खोजने गयी थी ? क्या नाचने-कूदने से परमात्मा मिल सकता है?' हमारे मानव के जितने भी कायदे कानून बने हैं, उस में उन लोगों को इसका अंदाज भी नहीं है कि मनुष्य कितना दृढ़ित हो गया है। जिन्होंने भी बनाये हैं वो बहुत शालीन लोग थे। उन्होंने उस दृढ़ता को और उस धृष्टता को पहचाना ही नहीं कि मनुष्य अन्दर से कितने गन्दे कामों में फँसा हुआ है। अगर वो लोग जान जाये तो नये कायदे बनाने पड़ेंगे, इन लोगों को सब को पकडने के लिये| ईसा मसीह को तो इन्होंने उठा कर सूली पर चढ़ा लिया। वो आसान था। लेकिन इन लोगों को तो कोई पकड़ ही नहीं पाता। जो रात-दिन आपसे रुपया खसोट कर के और आप लोगों का सर्वनाश करने पर लगे हुये हैं। और कल आपके बच्चों को पागलखाने में भेजने के लिये तैय्यार बैठे हये हैं। कभी आप लोग इधर भी आँख उठा कर के देखिये और सोचिये कि ये क्या है? परमात्मा के नाम पर जड़ वस्तुओं को बाँटना कहाँ कि भल-मानसियत ! आप भी क्या कभी सोचते नहीं? कलयुग में तो मैं सोचती हूँ कि मनुष्य पर कितनी प्रगल्भ बुद्धि, इतनी उसके अन्दर ....क्या वो सारी अपनी बुद्धि को बेच खाता है, कि वो समझता नहीं कि किस तरह का मेस्मरिज्म है और इनटाइसमेंट हैं। इसकी वजह से हम ऐसे पागल जैसे उसके पीछे भाग रहे हैं और अपने अन्दर झूठे, बिल्कुल मिथ्या, निष्पाप अन्दर में कर के की बड़े शान्ति में बैठे हुये है। अपने से भी भुलावा कर रहे हैं और दूसरों से भी भुलावा कर रहे हैं। जब आपको रियलाइजेशन हो जाता है , तब बहुत दूर जाने की, बहुत पढ़ने की जरूरत नहीं है। आप समझ सकते हैं कि आप रियलाइज्ड हैं। इसलिये आप में एक जगह अन्दर से शांत है। मैं देखती हूँ कि इतने लोगों के गुरु हैं और तीस-तीस, चालीस-चालीस साल में हार्ट अॅटैक आ कर के लोग मर हूँ। जाये। असम्भव की बात हैं कि अगर आप में रियलाइजेशन का जरासा भी तत्त्व एक बार जाग उठा है, तो हार्ट अॅटैक तो क्या कोई अॅक्सिडेंट होना भी मुश्किल है। ऐसे ऐसे उदाहरण हमारे अन्दर है। एक छोटा सा लड़का, अभी परसों बता रहे थे कि ट्रेन से आ रहा था और ट्रेन पूरी उलट गयी। जिस डिब्बे में वो बच्चा था, उसमें से एक भी आदमी को चोट भी नहीं आयी । आपके उपर देवता मंडराना चाहिये। अगर दिव्य नहीं उतर सकता तो ऐसा रियलाइजेशन क्या ? अब हमारा ही लो, आप जानते हैं कि कितने ही पार ह्ये हैं। कैन्सर तक ठीक करते हैं। कोई विशेष बात नहीं। कोई विशेष हमारे ख्याल से बात नहीं। सिर्फ यही है कि इसमें इनको इंटरेस्ट नहीं है, किसी को क्युअर करने में । इनको रियलाइजेशन में ही इंटरेस्ट है। क्योंकि जो आनन्द आप ने पाया है, वही आप चाहते हैं कि सब पायें। सहज में ही है। अगर आप के पास रुपया पैसा है तो आप चाहते हैं कि रुपया-पैसा खर्च करें। लोगों को खिलायें , पिलायें। ऐसे ही रियलाइज्ड सोल ही चाहेगा मन में कि दूसरों की भी जागृति करें और पार करें और कर सकते हैं। अगर आप के अन्दर लाइट आयी है उसके लिये कसम लेने की कोई जरूरत नहीं है। कस्तुरी का अगर सुगन्ध आ रहा हैं तो उसके लिये कोई आप को Original Transcript : Hindi कसम ले कर कहने की जरूरत नहीं है कि, यहाँ पे कस्तुरी का सुगन्ध हैं। लेकिन कस्तुरी की खोज है कैसे ? ये पहले अन्दर सोच लीजिये। नहीं तो ऐसे चक्करों में घूमने की कोई जरूरत नहीं है । एक साइड में तो हमारे ये लोग हैं, जो कि हमारे सबकॉन्शस से खेल रहे हैं। हमारे जड़ चेतन से, हमारे पास्ट से खेल रहे हैं। मैं ऐसे भी लोगों को जानती हैँ इस खोज में मैंने बहुत गुरु घंटालों को देखा और सब के मैं हथखण्डे जानती हूँ कि ये क्या क्या दशा करते हैं और किस तरह से जन्मजन्मांतर के लिये आपकी कुण्डलिनियों का सत्यानाश करते हैं। मैं बहुत से ऐसे लोगों को जानती हूँ, जो आपको पिछले जन्म की बातें बताते हैं। इसी से आप अभिभूत हो जाते हैं। किसी ने कह दिया कि मैं तुम्हारा पति हूँ। एक थी, आयीं मेरे पास और कहने लगीं, 'माताजी, मैंने उनको अपना सर्वस्व दे दिया।' मैंने कहा, 'क्यों? क्यों दिया तुमने?' 'वो कह रहे थे कि मैं तुम्हारा पति हूँ। मैंने कहा, 'तुम्हारा पति ! बड़ी पातिव्रत्य हो । अगर ऐसा ही पातिव्रत्य हैं तो जो मर गया पति उसके लिये तो मरी जा रही हो और जो तुम्हारा पति आज जीवित है उसका क्या हाल है? उसके प्रति कोई पातिव्रत्य नहीं? और ये जो एक पैसा खाऊ यहाँ बैठा हुआ है उसको तुमने सारे जेवर दे दिये। क्योंकि उसने तुमसे कहा कि, ये तुम्हारा पति है।' फिर कोई कह रहे थे, 'ये साहब हम से कह रहे थे कि, हम भगवान के अवतार हैं। हम परमेश्वर हैं।' अरे कोई कहने के लिये अपने देश में किसी को क्या लगता है! झूठ बोलने में तो हम लोग पक्के माहिर है। कोई किसी से झूठ बोल दीजिये, इसको साइकोलॉजी में सिग्मॉइड पर्सनॅलिटी कहते हैं। आप पढ़े हैं साइकोलॉजी तो आप समझ सकते हैं, कि साइकोलॉजिस्ट ने इसका पता लगाया हैं। नहीं लगाया ऐसी बात नहीं। खड़े हो कर के जो चाहे अंटसंट बकने लग जाते हैं और लोग उस पे विश्वास करने लग गये। ऐसा बायबल में भी कहा गया है, कि ऐसे बहुत से संसार में आये। सम्भल के रहिये। कहने लग गये, 'हम भगवान हैं!' अरे, भगवान हैं तो उसी को शक्ति भी तो होती है। एक महाशय जी मुझ से कहने लगे, 'मैंने उन से कहा कि आपके पास इतनी औरतों का जमाघट क्यों भाई? आप दरवाजे बंद कर के ये क्या कर रहे हैं?' भगवान के नाम पर ये काम क्या करते हैं?' किसी स्त्री पर उन्होंने बहुत अत्याचार किया था। मुझे आ कर प्राइवेटली बताती। मैंने कहा कि, 'तुम कोर्ट में जा कर बताओ।' ये आदमी पकड़ा गया। कहने लगी, 'हम कोर्ट में कैसे बतायें? हमारे ऊपर आफ़त आ जायेगी। हमारी इज्जत हैं। हमारी फॅमिली हैं।' तो मैंने कहा, 'अगर तुम कोर्ट में नहीं बता सकती, तो इसका कैसे पार हो।' उस महाशय से जा कर जब मैंने कहा कि, 'तुम ये क्या कर रहे हो? क्यों ऐसा पाप ढो रहे हो? क्या तुमको इससे मिलेगा, परमात्मा के नाम।' कहने लगा, 'तुम्हे नहीं मालूम मैं श्रीकृष्ण हूँ। मैंने कहा वाह, भाई वाह! शकल तो आपकी भूत जैसी और आप श्रीकृष्ण बने। आज श्रीकृष्ण कहा, 'श्रीकृष्ण को आप कितना जानते हैं?' जिसने पाँच साल की उम्र में कालिया का मर्दन किया था उसके सर पे कैसे ह्ये? मैंने के। मैं दाढी आपकी नोचती हूैँ तो उठ नहीं सकेंगे आप!' मज़ाक ही मैंने कहा दिया। बाद में सुना किसी ने चढ़ उनकी दाढ़ी आधा घण्टा पकड़ी थी वो हिलते रहे ऐसे ऐसे। मैंने तो यूं ही कह दिया। ऐसे श्रीकृष्ण पैदा होने लग जाये। दूसरे साहब कहने लगे कि, 'मैं औरतों को इसलिये नग्न करता हूँ कि श्रीकृष्ण ने औरतों को नग्न किया । बताईये कहाँ कि बेवकूफ़ी की बात है। श्रीकृष्ण पाँच साल की उमर में बच्चों जैसी उनकी लीला थी। औरतों के साथ में उनको क्या.... पाँच साल का बच्चा! वैसे बहुत गहन अर्थ है। वो तो सहजयोग लीला कर रहे थे। पाँच Original Transcript : Hindi साल के बच्चे के लिये कौन बड़ा और कौन छोटा! पाँच साल के भी नहीं उससे भी छोटे थे। तो मैंने उनसे कहा कि, 'अगर यही बात थी तो काहे के लिये वो द्वारिका में बैठे हये वो द्रौपदी के वस्त्रहरण के वक्त में दौडे गये थे वहाँ। शंख-चक्र-गदा-पद्म, गरुड लयी सुधारें। क्यों सुधारें? क्यों सुधारे थे, अगर उनको रस्त्र की पवित्रता का कोई | ख्याल नहीं था। ये आप जवाब दीजिये।' कहाँ तो वो एक उँगली पर गुरु को पकड़ने वाले वो श्रीकृष्ण और आप संहारे गली में और बज़ार में मिलते हैं जहाँ जाईये वहाँ, एक श्रीकृष्ण, एक शिवजी भगवान । कहाँ श्री शिवजी भगवान, कहाँ श्रीकृष्ण। कुछ आप की बुद्धि बच गयी है या नहीं? मुझे कभी कभी बड़ा आश्चर्य होता है। मनुष्य के इतनी बुद्धि की प्रगल्भता में पहुँच गया जिसको परमात्मा ने सारे ही बुद्धि के आवरण खोल दिये। ऐसे मनुष्य बुद्धि में धर्म के मामले में इतना पड़दा क्यों? अपने ही देश में नहीं इसको तो बात ही नहीं , परदेश में भी इस कदर अंध:कार! एक वहाँ योगी जी, पहुँचे हये हैं। उनका शिष्य हमसे मिलने आया । वो हमारे सामने आये। देखते हैं क्या उनका आज्ञा चक्र और नाभि चक्र दोनों को गोल घूमा दिया और वो भजन गा रहे हैं। उलटा घूमाने का मतलब हैं कि आदमी जो पागल होता है, जब आप पार हो जाये तो देखियेगा, कि जब आदमी पागल हो जाता है तब उनका आज्ञा चक्र और नाभि चक्र उलटा घूमता है। ये सब प्रेतसिद्धता, स्मशान सिद्धता, हमारे देश में, भारतवर्ष में पुराने जमाने से चली आयी है। उसके बारे हमारे यहाँ पे जानता नहीं ऐसी बात नहीं है, लेकिन उसकी ओर ये जरुर है कि आधुनिक शिक्षण व्यवस्था में इधर ध्यान नहीं है। ये जो देवियाँ वरगैरे आती है किसी के बदन में और हम लोग कुंकु लगाने को जाते हैं। उनके अन्दर में भूत आते हैं। हमें समझ में क्यों नहीं आया । ये सब प्रेत विद्या और स्मशान विद्या | है। इसका एक बड़ा भारी साइन्स है। इस पर मैं कभी चाहे तो बताऊंगी आपको। आज दत्त महाराज के चरणों में खड़ी हूँ। इसको भी जान लेना चाहिये । ये सब महामूर्खता के लक्षण हैं। वो हम ऐसे दूसरों के हाथों में अपने को बेच दें। कम से कम अपनी बुद्धि तो सही रखें। थोड़ा सा झटक के सोचे। जब कभी भाषण में आप जाये, तो आप सोचें कि आदमी बोल क्या रहा है? और कर क्या रहा है? इसका बोलना और करना इस में अन्तर, वो कभी भी हो ही नहीं सकता। इसको गुरु आप समझ लीजिये। अभी हम कहे कि हम ऐसे हैं, वैसे हैं। कल हम लपके सांसारिक चीज़ों में, हम कभी भी वैसे हो नहीं सकते। संसार कोई व्यर्थ की चीज़़ नहीं है । लेकिन साक्षित्व तो कम से कम गुरुओं में आना चाहिये। कम से कम। कुण्डलिनी के बारे में भी बहुत गुरुओं ने लिख लिया। जिनके बारे में आपको मुझे बताना है। कल भी मैंने बताया था, कि भगवान के पास में कोई घड़ी नहीं है। जो वो कह दें कि, 'चार बजे मैं तुम्हारी कुण्डलिनी जागृत करता हूँ।' ये सब भूतों की व्यवस्था है। इस पर मैं आपको एक बड़ा सा उदाहरण देती हूँ। डॉ.लाइन कर के एक भारी डॉक्टर लंडन में रहता है। उसने कुछ बहत शोध किये थे । वो चाहते थे कि लोगों को उसे शुअरटी आयें। बड़ा लेकिन अकस्मात उनकी एक अॅक्सिडेंट में मृत्यु हो गयी। इसके कारण वो अपना जो शोध था, लोगों को बताने का, तो उन्होंने जब उनकी मृत्यु हो गयी, हम जब मरते हैं तो पूरे नहीं मरते हैं, थोड़ा सा हिस्सा गिर जाता है, बाकी सुक्ष्म शरीर जीवित है, तो उन्होंने उस सुक्ष्म शरीर में ये सोचा कि चलो किसी के अन्दर घुस कर ही, प्रवेश कर के देखें। तो विएतनाम में एक सोल्जर लड़ रहा था, उसके शरीर में उसने प्रवेश किया। और उसे कहा कि, 'तुम मेरे 8. Original Transcript : Hindi लड़के के पास चलो। और उसे ऐसी ऐसी बात बताओ।' अब ये सोचिये कि डॉक्टर लाइन को ऐसा ही करना था तो उसके लड़के के अन्दर क्यों नहीं घूसा ? वो तो जानते थे, कि इससे कोई परिणाम नहीं । तो उन्होंने कहा कि, 'अच्छा तुम मेरे लड़के से जा के सारी बात बताओ। जब ये सोल्जर उस लड़के के पास गया और उसे जा कर बताया तो वो इस बात को मान गया। उसने कहा कि, 'हाँ, ये सब बातें मेरे पिताजी के सिवाय और किसी को मालूम नहीं।' उसने कहा, 'चलो, तुम क्लिनिक खोलो।' उन्होंने एक बड़ा भारी ऑर्गनाइझेशन बनाया। जिसके वो लोगों को ठीक करें। अब डॉ. लाइन के साथ बहुत से और डॉक्टर इनके साथ जुट गये। वो भी ये कार्य तहत करते थे। अभी तक वो हो रहा है कार्य। वो आपसे बताते हैं कि आपको किसी तरह की तकलीफ़ है, शिकायत है, आपको बताते हैं, अच्छा पाँच बजे शाम को बराबर इस वक्त आपके अन्दर ठीक हो। कोई न कोई अन्दर व्यक्ति घुस कर के आप के साइकोलॉजी में जिसको हम सुपर इगो कहते हैं, इसके अन्दर घुस के और इस कार्य को करते हैं। एक भूत निकाल के दूसरा भूत बिठाया। अगर आप शराबी होंगे तो शराब ठीक हो जायेगा लेकिन क्रोध आने इन लोगों का कार्य है। पर बिचारे सीधे हैं। वो लोग कम से कम ये कहते हैं कि हम स्पिरीट का काम करते हैं। वो ये नहीं कहते हैं कि हम भगवान का कार्य करते हैं । लेकिन अपने देश में तो लोग पक्के भूत नहीं, लगेगा । ये | राक्षसों का काम करते हैं और उसको भगवान का नाम देते हैं। ऐसे लोग अगर किसी को थोड़ा सा ठीक भी कर ले, तो इससे क्या फायदा? कुण्डलिनी जहाँ खराब हुई, अपने माँ को जहाँ ...हैं ऐसी जगह जाने की कोई जरूरत नहीं। आज नहीं कल आप लोग जरूर पार हो जाईयेगा। लेकिन गलत रास्ते पर मत जाईये। एक बार आपकी कुण्डलिनी खराब हो जायेगी, तो मैं उसे कुछ भी नहीं कर सकती। सारा ही कार्य खत्म हो जायेगा। जिन जिनकी कुण्डलिनियाँ खराब हो गयी है, आप लोग जानते हैं, आप में से बहुत लोग पार हये हैं, कितनी तकलीफ़ें हमने उठायी। कुछ कुछ लोगों पर तो हाथ रखते वक्त इन लोगों के हाथ में बड़े बड़े ब्लिस्टर्स आते हैं। बहुत बड़े बड़े ब्लिस्टर्स आते हैं। और वो जब मेरी ओर हाथ करते हैं, उनको भी कभी कभी थोड़ा थोड़ा ब्लिस्टर्स जैसा आ जाता है। पर जलता तो बहुतों का हाथ है। मेरे पास एकदम ठण्डी ठण्डी हवा है, लेकिन उनके हाथ जल रहे हैं। क्योंकि मैं चाह रही हूँ कि उनकी सत्ता को स्थापना दूँ और उनके अन्दर तो कोई और ही सत्ता बैठी है। ऐसे गुरुओं से बच के रहिये। क्योंकि कायदा इसे रोक नहीं सकता। सीधी तरह जिसकी रोकथाम नहीं, इसे अपने बुद्धि से सोचिये, कि सच्चा गुरु कौन हैं? वही जो आपको परम दे। इस पर अभी एक औरत ने मुझ से सवाल पूछा था। बहुत मौके का सवाल था। उसने मुझे पूछा कि, 'क्या आपने और भी कोई रियलाइज्ड सोल दुनिया में देखे हैं? जो कि आपके पास आये बगैर ही।' ऐसे तो बहुत हो चुके और अभी भी हैं । इसी कारण मैं अपने बहुत शिष्यों को लेकर कोल्हापूर से दूर पच्चीस मील दूरी पर एक जंगल में, पहाड़ी के ऊपर सात मिल दूरी पर गगनगड़ में आ गयी, उनका बहुत बड़ा उत्सव है। इसके लिये मेरी सारी सदिच्छा है। वहाँ पर एक बड़ा भारी गुरु हैं। मैं इनको ले गयी। मैंने कहा तुम ऐसे हाथ रखो बस्। 'हाथ के सहारे इतने वाइब्रेशन्स आ रहे हैं माँ!' क्यों उस जंगल में चलें? ये भी सोचने की बात हैं। जितने भी बड़े बड़े पहुँचे हये लोग होते हैं, जंगल में रहते हैं। आपने नित्यानंद जी के लिये कहा । जो कि असल में बहुत बड़े गुरु हैं। वो अगर कोई भी | Original Transcript : Hindi आता था तो पत्थर मारते थे और कहते थे , 'भाग जाओ यहाँ से। निकल जाओ।' हमारे नागपूर में ताजुद्दीन बाबा थे। उनके लिये भी लोग ऐसा कहते थे। वो तो जंगल में ही रहते थे । अब वहाँ आबादी हो गयी। क्यों ये लोग जंगल में भाग जाते हैं? इसके दो-चार कारण हैं। अभी आपने देखा, यहाँ छोटे बच्चे बैठे थे । उनके हाथ जल रहे थे। इसी तरह से उनके बदन जलने लगते हैं। बहुत से साधु तो बेचारे पानी में ही रहते हैं। क्योंकि आप लोगों की जो साइकी हैं, सुपर इगो हैं, उनमें बैठे हुये भूत इनको जलाने के लिये लगे हैं। उन भक्तों को सताने के लिये लगे हैं। इसलिये वो जंगल में भाग खड़े होते हैं। क्योंकि आप को तो पता नहीं आप कर क्या रहे हैं? आपके वाइब्रेशन्स आपको समझ कहाँ आते हैं? इसलिये बेचारे जंगलों में जा कर के बैठ हये हैं कि बाबा, बचाओ इन लोगों से। उनका तारण-हारण वो कहाँ से करे! गगनगड़ के महाराज का ही देखिये । उन्होंने बहतों को तो ठीक किये। लेकिन क्या हैं उनकी उंगलियाँ टेलिस्कोप के जैसे अन्दर चली गयीं| पाँव की उंगलियाँ भी ऐसे अन्दर चली गयी। बेचारे पेड़ पर या सीढ़ी पर सवारी करते हैं। इसके अलावा इधर से उधर नहीं जाते। लेकिन जब मैं उनके पास पहुँची। जो लोग मेरे साथ थे उन्होंने भी देखा। उन्होंने फौरन मुझे पहचाना। कोई शंका नहीं। उन्होंने आज तक मुझे नहीं देखा है। लेकिन बहुत सालों से मेरे बारे में वो जानते ही थे। उम्र में भी मेरे से बड़े हैं। कहने लगे, 'बहुत सालों से में आपका इंतजार कर रहा था माँ। आज हमारा भाग्य कि आप पधारे।' वो नाथपंथी हैं। और बड़े पहुँचे हुये। ऐसे ही मैं हिमालय पर भी गयी थी। वहाँ पर भी मुझे मिले। ऐसे ही हरिद्वार में एक-दो हैं बहुत .... मौका है। मैं तुमको बताऊँगी की अपनी शक्ति को कैसे बचाना है और किस तरह से इन लोगों का प्रहार वापस लौटाना है। मैं बैठती हूँ। तुम आओ तो सही। सब को मैं ठीक कर दूं।' बहुतों ने कहा, 'माँ आयेंगे, जरूर आयेंगे।' रहते हैं। मैंने उनसे कहा, 'बाहर आने का लेकिन हिम्मत दिखती नहीं बेचारों की। क्योंकि इनके हाथ-पैर तोड़ दिये। इनके बदन में छाले डाल दिये। उनको जला दिया। राक्षसों के साथ। समझ लीजिये दस राक्षस और छ: राक्षसिनी अभी तक मैं जोड़ पायी हूँ। जन्म ले कर इस कलियुग में आयी। आजकल के जमाने में समझ लीजिये अगर रावण आ जाये, तो अपने को कहने नहीं वाला है कि मैं रावण हूँ। वो तो अपने को भगवान ही कहेगा। अगर रावण कहे तो अभी कैद में बंद ना हो जाये। राक्षसों की भी पहचान हैं वो भी मैं आपको बता देती हूँ। आप देखिये। आपको फायदा है। जिस आदमी की आँख बिल्ली के जैसे, आप बिल्ली की आँख पहले देखिये तब आपको समझ में आयेगा। बिल्ली की आँख, जैसे उसके अन्दर की पुतली होती है, आँख देखते देखते एकदम छोटी हो जाती है, भूरी हो जाती है । ऐसे ही राक्षसों की आँख होती है। में सब कुछ जानती हूँ, अच्छे से। हर एक जन्म में मैंने इन लोगों को देखा हुआ है। इनकी आँख से आप पहचान सकते हैं कि ये लोग राक्षस हैं, इनकी आँख की पुतली एकदम छोटी हो कर के.... । इनका क्या ? कहने को वे भगवान कहे और कुछ कहे, राक्षस ही है और इन्होंने बहुत सी सिद्धियाँ प्राप्त कर ली हैं। ये हमारे भोला शंकर जी का कार्य हैं, क्या करें ? उन्होंने बहुत सारी सिद्धियाँ प्राप्त कर लीं । जैसे रावण को एक सिद्धि थी, कि जब वो बोलते थे और भाषण देते थे तो नाभि चक्र पे वो ऐसे कुछ काम कर जाते थे कि वहाँ पर एक एक भूत बैठ जायें । हजारों लोग अभिभूत हो कर के उनके पैरों को छूते थे। यहाँ तक कि राम से लड़ने के लिये कोई तैयार नहीं था। उन्होंने सब को तैयार किया। इसी तरह महिषासुर की भी थी । सारे ही असुरों की अपनी अपनी 10 Original Transcript : Hindi सिद्धियाँ थीं और इसी सिद्धियों के कारण वो लोग हमेशा भ्रमण करते रहे। प्रकाश को दबाते रहे और अंधेरा बढ़ता लोगों के गया। आज कलयुग में बराबरी हैं। सारी बराबरी हैं और आप सोच रहे हैं कि मेरे दो ही हाथ हैं। आप लिये, आप ही लोगों का कार्य है, आप को आश्चर्य होगा कि देवता भी एक तरफ बैठे ह्ये हैं और राक्षस भी एक तरफ बैठे हैं। घमासान युद्ध चल रहा है। वो परेशानियाँ क्या आप सोचते हैं, आप के करने की वजह से ? बिल्कुल भी नहीं। ये दुष्ट और राक्षस बैठ कर के प्रेत योनियों के सारे कार्य करा के आपको त्रस्त कर रहे हैं। किसी तरह से आप दौड़ कर उनके ही चरणों में जायें। ये सब इन्हीं का कार्य है। अगर इसी को हटाना है तो अपने ही अन्दर में ज्योत जलानी है। अगर इस को प्रकाशित करना है, तो सब को अपने अन्दर एक एक दीप जलायें। आप स्वयं एक दीप है और आश्चर्य तो ये है कि इस वक्त परमात्मा भी यही चाहता है कि मनुष्य ही कार्य करें। मनुष्य ही वो परमात्मा स्वरूप हो जायें और जिसको हम अति मानव कहते हैं, जिसको हम सुपर मॅन कहते हैं, इसकी स्थापना हो। एक नया डाइमेंशन आपके अन्दर आने वाला है। इसको लेना सीखो, इसको पाना सीखो। बुद्धि के कसौटी पर अभी इसे उतारा नहीं जा सकता। क्योंकि अगर बुद्धि से आप समझना चाहें तो आपको मेरा सिर्फ हाथ ही दिखायी दे रहा है, इसकी अन्दर से बहने वाली अव्यक्त धारायें नहीं दिखायी देगी। जो लोग बहुत बड़े पंडित हैं वो लोग चाहे तो कबीरदास को पढ़ें, नानक जी को पढ़ें, हो सके तो आदि शंकराचार्य को पढ़ें। वो तो सब से बढ़िया हैं। आदि शंकराचार्य को अगर पढ़े तो समझ सकते हैं मैं कि किस चैतन्य लहरियों की बातें कर रही हूँ। कुण्डलिनी पर अभी तक मुझे कोई भी ऐसा दिखायी नहीं दिया, जिसे व्यवस्थित रूप से कुछ समझाऊँ। थोड़ा थोड़ा ज्ञान हो जाने से ही कभी कभी बड़ा भारी भयंकर अनर्थ हो जाता है । ऐसा ही अनर्थ कुण्डलिनी के बारे में भी आज तक होता रहा ही है। नहीं तो इस तरह की विचित्र बातें न जाने उस समय किन लोगों ने लिखी हैं। लेकिन तो भी मनुष्य की द्रष्टा स्थिति इतनी ऊँची हैं, इतनी ऊँची हैं, जैसे देवी भागवत आप पढ़े। मार्कण्डेय स्वामी की सप्तशती आप पढ़े आपको आश्चर्य होगा कि कितनी गहराई से, कितने छोटे छोटे डिटेल्स में उन्होंने इस चीज़ को जाना। असल में जब तक आप का रियलाइजेशन नहीं होता, तब तक सभी कुछ करना व्यर्थ है। कृष्ण ने भी यही कहा है। कृष्ण ने भी यही कहा था कि पहले उसे अन्दर ही पा लो। लेकिन समझने वालों ने समझा नहीं। वो कहते हैं से कि अन्दर पा लो तुम कहते हो कि बाहर ले जाओ। इनका मतलब था कि तुम साक्षी हो। साक्ष होने के बाद तुम हो रहा है, अकर्म में चला जा रहा है। आप कुछ करते ही नहीं। इगो ही खत्म हो गया। वो सुपर इगो ही खत्म हो गया जो कर्ता है, करने ही वाला चीज़ जायेगा । वो कह रहे थे तो माना नहीं। वो डिप्लोमॅट थे, राजकारणी थे। कृष्ण का भी अपना एक तरह का गुरुत्व है। उनका गुरुत्व ही बड़ा मजेदार है। बड़े भारी राजकारणी थे। इसको मैं कहती थी कि अॅबसल्यूट प्युअर पॉलिटिशियन। ऐसा बड़ा पॉलिटिशियन था वो। और वो सब को जानता था कि इन महामूर्खों को ठीक करने का यही तरीका है। जिस वक्त में एक बच्चा है वो अपने घोड़े को गाड़ी के पीछे बाँध कर के हाँक रहा है। तो बाप आ कर के कहता है, 'चलने दो घोड़ा। ऐसे ही चलने दो, हाँकते रहो , हाँकते रहो । पहुँच जाओगे।' फिर बच्चा जब हार कर के सोचता है, 'अरे घोड़ा तो चल ही नहीं रहा।' तब उसको समझ में आता है, कि घोड़े को आगे करना चाहिये, तब हाँकना चाहिये। इसलिये उन्होंने कहा कि, 'अच्छा तुम कर्मयोग कर।' अब 11 Original Transcript : Hindi देखिये इसमें डिप्लोमसी कितनी! फिर ऐसा भी गुरु मिलना बड़ा कठिन है! ऐसा भी गुरु है कि इसके लिये बहुत ही बुद्धि की तीक्ष्णता और प्रखरता चाहिये। आज तक आपको किसी ने ये बात नहीं बतायी होगी। आज बताऊँगी । आप सुन लीजिये। उन्होंने कहा कि 'ऐसा तुम कर्म करो। लेकिन कर्म का जो फल है वो परमात्मा पर छोड़ो।' वो हो | ही नहीं सकता, बिल्कुल अॅबसर्ड कंडिशन। जब आप किसी चीज़ को कर रहे हैं और जान रहे हैं, कर रहे हैं। आप इस को किसी और पे कैसे छोड़ दें? घोड़ा पीछे कर के ही हाँकने को कह रहे हैं। दूसरा उन्होंने कहा कि, 'तुम भक्ति करो।' देखिये , इसमें भी देखिये। बड़ा सुन्दर है। तुम अनन्य भक्ति करो । जब दुसरा कोई नहीं रहेगा तो भक्ति कैसे होने वाली? मतलब ये कि मिलन हो गया तो भक्ति किस की करें? उन्होंने कहा, 'पुष्पम्, फलम्, तोयम्' जो कुछ भी तुम मुझे दो मैं ले लूंगा। लेकिन देने के वक्त उन्होंने यही कहा है कि 'तुम अनन्य भक्ति करो ।' अॅबसर्ड बात है। क्योंकि अॅबसर्डिटी पर ही आदमी का सर चकरायेगा। और तभी वो ठिकाने पे आयेगा। वो सोच भी नहीं सकते थे कि ऐसे आदमी को अकल आने वाली है। पर मैं तो माँ हँ और माँ चाहे वो बात कहनी भी पड़े तो भी कह डालेगी | कि बेटे ऐसा नहीं। ऐसा नहीं मानो जब तक हो सकेगा तब तक कहेगी। गला फाड़ फाड़ कर अपने बच्चे से कहेगी। माँ का हृदय और होता है। उसे डिप्लोमसी नहीं खेली जाती बहुत देर। बहुत हो गया। बहुत परेशान। अब जरूरत है इस चीज़ को करने की और हो रहा है। आप लोग भी इस चीज़ को पा रहे हैं जिन्होंने पाया है। जिन्होंने जाना हैं कल भी यहाँ पर प्रोग्रॅम है, जरूर आयें। जिन्होंने नहीं पाया है वो भी आयें। हमारे यहाँ और भी जगह, भारतीय विद्याभवन में हम लोग हमेशा के लिये चाह रहे थे कि ऐसी जगह बनें कि लोग आते रहें। यहाँ पर बहुत से लोग ऐसे हैं जो पार हो गये हैं। जागृति तो आप पार होते ही दे सकते हैं इन लोगों को। चक्रों के बारे में बहुत जानते हैं, बहुत ज्ञानी हो गये हैं। और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पार नहीं करा सकते। हिन्दुस्तान की ये गरिमा हैं कि ये देश, हमारी योगभूमि है। सारे संसार के देशों से भी ऊँचा अपना देश। इस देश के वाइब्रेशन्स इतने हायेस्ट , इसमें कोई शंका नहीं। और सारे ही संसार की रीढ़ की हड्डी में अपना देश है और इसी में कुण्डलिनी का स्थान है । जो सारे ही संसार को एक दिन ठीक कर सकती है। पर अभी तो सारे ही चक्र हमारे पकड़े हये हैं। कुण्डलिनी की गति ही मुश्किल हो रही है। आप अगर अपने अपने चक्र छुडा ले, तो हो सकता है इसी देश में से ही वो संदेश बाहर जाये, जिससे की सारा संसार बदल कर के एक दूसरे रास्ते पर आ कर खड़ा होगा। यहाँ सत्ययुग का ही आवाहन है और भी आने वाला है। ये सत्ययुग के आने की बात, लेकिन ये अभी आपके स्वतंत्रता और आपकी सत्ता पे छोड़ा गया है कि आप चाहें तो इसे लें या संहार किया जाये। ऐसे ही कैन्सर जैसी और युद्ध जैसी बातें, ये सब हमारे सत्ययुग संसार को खत्म करेगी। अगर आप लोग चाहे तो इसे ले सकते हैं और संसार को उजियारा में डाल सकते हैं। और नहीं तो अंध:कार आ कर परमात्मा चाहे हजारो सृष्टियाँ बना सकता है। एक एक्स्परिमेंट फेल हो गया। ऐसा ही वो सोचेगा। अभी आप की ही तुलना इसे देखना है कि कितने लोग अपने को लगाते हैं । और बहुत लोगों ने इस प्रेम बहुत बहुत आप सब का धन्यवाद! तीन दिन का सेमिनार बहुत प्रेमपूर्वक हुआ स्वीकार किया। इसलिये एक माँ के नाते मैं सबका धन्यवाद मानती हूँ। वैसे ही हमारे बहुत से बच्चों ने रात-दिन मेहनत कर के और औरों को तारण करने के लिये इतनी मेहनत की है और इसी तरह से करते रहें । ऐसे ही उनको आशीर्वाद दे कर और आप सब को मेरे प्रेम का आशीर्वाद दे कर मैं आप से बिदा लेती हूँ। 12 ---------------------- 19731209_Sarvajanik Karyakram_India.pdf-page0.txt Sarvajanik Karyakram Date 9th December 1973 : Place India Public Program Type : Speech Language Hindi CONTENTS | Transcript | 02 - 12 Hindi English Marathi || Translation English Hindi Marathi 19731209_Sarvajanik Karyakram_India.pdf-page1.txt ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK श्री दत्त जयंती है। आज का दिन बहुत बड़ा है। इन्ही की आशीर्वाद से मैं सोचती हूँ कि ये आज का दिन आया हुआ है, जो आप लोगों में सहजयोग पल्लवित हुआ। सारे गुरुओं के गुरु, आदिगुरु श्रीदत्तमहाराज, उनका आज महान दिवस है। उनको मैं नमस्कार करती हूँ। उन्होंने मुझे अनेक जन्मों में सहजयोग पर बहुत सिखाया है। और उसी के फलस्वरूप इसी जन्म में भी मैं कुछ कार्य कर सकती हूँ। 'गुरुब्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ।' आद्यशक्ति ने जब सब सृष्टि की रचना की। सारी सृष्टि की रचना करने के बाद जैसे एक राजा अपना राज्य फैलाता है और उसके बाद भेष बदल के इस संसार को देखने आता है, इस तरह आदिशक्ति भी बार बार संसार में अवतरित हुई। लेकिन चाहे शक्ति कितनी भी ऊँची हो, उसे एक मनुष्य गुरु की जरूरत है। मनुष्य का स्थान उस शक्ति से ही है। अगर शक्ति को मानव रूप धारणा करनी है, तो कभी उसे पिता के स्वरूप, कभी उसे भाई के विष्णु- महेश इन देवों से जब सारी सृष्टि की रचना की, उस वक्त इस संसार में फँसे हये लोगों को बाहर निकालने का विचार स्वरूप, कभी उसे बेटे के स्वरूप पा कर ही वो संसार में आयी। सर्वप्रथम ऐसा ही समझें कि ब्रह्मा- आदिशक्ति के मन में आया, कि ये तीन तत् अगर किसी तरह से एकसाथ जूट जायें और उनमें श्री गणेश जी की बालकता, उनकी अबोधिता, उनका इनोसन्स उतर जायें, तो हो सकता है कि एक बहुत बड़ा कार्य करने वाले गुरु इन से निर्माण हो। सती अनसूया के रूप में उनका साक्षात् हुआ। ये एक ही ऐसी सती संसार में हैं कि जिसने इन्सान के तारण का विचार किया। ये तीनों बालक अनसूया के पास, अनसूया का अर्थ है कि जिसमें असूया नहीं। जो किसी से मत्सर नहीं करती। जो सर्वथा प्रेम होता है, उसमें मत्सर आदि, क्रोध आदि ऐसे नगण्य, क्षुद्र विचारों का कहाँ से स्थान है। जिस में कोई भी असूया नहीं, ऐसी अनसूया। इस की परीक्षा लेने के लिये ये तीनों भी, ऐसा कहा जाता है, इनके दरवाजे गये और उस वक्त उन्होंने अपने तेज बल से, ये तेज बल क्या था ? कि यही माँ का प्रेम अत्यंत..., शक्तिशाली माँ का प्रेम जो उन पर बरस पड़ा और वो छोटे बच्चे हो गये। उन्हीं का एकाकार स्वरूप श्रीदत्तमहाराज है। एक अजीब सी विभूति हैं। इसका की कितना भी वर्णन किया जायें वो कम है और समझाया जायें वो भी समझ से परे। ऐसे त्रिगुणों से भरे ह्ये श्रीदत्तमहाराज आदिगुरु के रूप में संसार में आये और उन्होंने अनेक बार इसकी शिक्षा दी कि भवसागर को किस तरह से पार किया जायें । कल मैंने आपसे बताया है कि हम संसार में अनेक धर्म बना कर के लड़ाई कर रहे हैं। इसी एक श्रीदत्त के अवतार अनेक बार संसार में आये। उनमें से, जैसे कि मैंने आप से कल बताया था, राजा जनक, जो कि जानकी जी के पिता थे। वे भी और कोई नहीं थी, बल्कि इन्हीं दत्तात्रेय जी के अवतार थे। उसके बाद, मच्छिंद्रनाथ, आपने नाम सुना होगा। वे भी उन्हीं के अवतार हैं। उसके बाद झोराष्ट्र, जो तीन बार संसार में आये। ये भी उन्हीं के अवतार हैं। इसके बाद मोहम्मद साहब, जो कि साक्षात् उन्हीं के अवतार थे और जब उनसे बहुत बार पूछा कि, 19731209_Sarvajanik Karyakram_India.pdf-page2.txt Original Transcript : Hindi 'भाई, तुम से भी तो पहले कोई आये होंगे?' तो उन्होंने कहा कि, 'आये थे एक मोहम्मद साहब ।' फिर उनसे पूछा कि, 'उससे पहले कौन था ?' कहने लगे कि, 'एक मोहम्मद साहब ।' मोहम्मद माने जो प्रेज होता है। जिसकी प्रेज की जायें । जो स्तुतिपात्र है । वही स्तुतिपात्र है जो संसार का तारण करता है। वही सारे मोहम्मद जो आये थे, वही सारे दत्तात्रेय जी बार बार संसार में आते हैं। उसके बाद नानक, गुरु नानक। उनकी आप अगर बानी कहे, उनकी आप अगर बातें सुने तो आपको आश्चर्य होगा, कि उन्होंने हर बार सहज में ही बात की। उन्होंने ही कहा कि, सहज समाधि लागो। उन्होंने ही कहा है कि, 'काहे रे बन खोजन जायीं, सदा निवासी, सदा अलेपा तो हे संग समायी। उस पे मध्य जो बास बसत है, मुकुर माही जब छायीं, तैसे ही हरि बसे निरंतर, घट ही खोजो भाई ।' घट ही खोजो, अन्दर ही है। अन्दर ही उसे प्राप्त करो। हम तो कविता गा रहे हैं। गाना गा रहे हैं। जो उन्होंने हमें डिस्क्रीप्शन दिया था उसे रटे जा रहे हैं। हृदय के ही अन्दर बसे हुये इस परम तत्त्व को, खोजने की बात। अनादि काल से ये आदिगुरु बार बार जन्म संसार में ले कर के.... । मोहम्मद साहब की जो लड़की थी, कल भी मैंने बताया है कि इसके बात शिया जाति की शुरूआत हुई। मुसलमानों में शिया नाम की जति है। सिया से आया हआ शब्द शिया हो गया। सिया माने सीताजी , आप जब यूपी में जायें तो सीता जी के लिये कहते हैं सिया जी। सियावर रामचन्द्र की जय! तब सिया का नाम लेते हैं। वो स्वयं सीताजी थी, आदिशक्ति थी। और उनके जो दो बेटे हुये थे, हसेन और हुसेन। जिन्होंने कितने ही दुष्टों का नाश किया। उसके बाद तंग आ कर के जब वो भी मर गये। उसके बाद दूसरे जन्म में उन्होंने सोचा कि अहिंसा को उन्होंने प्रस्थापित किया जायें। हिंसा से कुछ काम नहीं बना। एक नया एक्सपरिमेंट करने के लिये, बुद्ध और महावीर के रूप में जन्म लिया। एक्सपरिमेंट ही होते हैं। नानक साहब के बाद एक पचास-साठ साल पहले, अपने इस महाराष्ट्र में ही शिर्डी के साईंबाबा, ये भी साक्षात् दत्तात्रेय जी के ही अवतार थे। इसका आपको अगर प्रमाण के चाहिये, अगर आप पार हो जायें, और इसके बाद आप किसी पे ही हाथ रख कर देखिये तो एक हो तरह वाइब्रेशन्स दिखेंगे। वाइब्रेशन्स से ही आप सब को जान सकते हैं । जैसे आप के पास आँख होना जरूरी है, किसी की आप आकृति देख रहे हैं, उसका रंग देखिये , इसी तरह से आपके पास वाइब्रेशन्स आने की जरूरत हैं जिससे आप संसार के सब गुरुओं को जान सके। और जान सके कि कौन सच्चा गुरु हैं और कौन झूठा गुरु। कौन उस आदिगुरु दत्तात्रेय जी के साक्षात् हैं। कहने को तो आज कल हजारों गुरु संसार में आ गये। किसी के कहने से कोई गुरु नहीं होता। और किसी को मान भी लेने से वो गुरु नहीं होता। गुरु शब्द ही का अर्थ बहुत बड़ा है। इसको समझ लेना चाहिये। आज इसी पे में आज बातचीत करना चाहती हूँ कि गुरु कौन और कौन गुरु नहीं। गुरु शब्द का अर्थ ही ये है कि जो हमसे बड़ा है। जो हमसे उँचाई पे बैठा हुआ है। जैसे उँचाई पे बैठा हुआ पानी अकस्मात नीचे आ जाये। वो अपनी सतह को ढूँढने के लिये, अपने सतह पे सब को लाने के लिये हमेशा लालायित है। आप पानी को किसी उँचाईं पर रख दीजिये, वो चाहेगा कि उसी उँचाईं पे सब को लाऊँ। यही गुरु का अर्थ । ऐसा जो नहीं जो गुरु को नहीं। हमसे उँचा वो हर मामले में होना है। एक ही मामले में नहीं। इसलिये आजकल जो गली गली, रास्ते रास्ते पर हम लोग गुरुओं को मान रहे हैं, उनको याद रखना चाहिये, कि गुरुओं की हजारों .....। जो गुरु परम तत्त्व की बात करते हैं वो ही साक्षात् गुरु। 3 19731209_Sarvajanik Karyakram_India.pdf-page3.txt Original Transcript : Hindi जो परमात्मा की बात करते हैं और परमात्मा की ओर ही आपको उठाते हैं वही गुरु हैं। जो लोग आप से रुपया- पैसा लेते हैं, वो गुरु नहीं। जो अपनी वाणी का रुपया लेते हैं वो गुरु कभी भी नहीं हो सकता। क्योंकि ये वाणी परमात्मा से आयी हुई बहमूल्य चीज़ है। इस की कोई भी किमत आप दे नहीं सकते। जिस दिन आप इसकी किमत दे सके, ये परमात्मा की चीज़ नहीं। आप परमात्मा को बाजार में जा कर खरीद नहीं सकते। याद रखिये, आज हम लोग इस तरह के हजारों लोगों के सामने खड़े हैं, जो परमात्मा के नाम पर पैसा कमायें। इससे बढ़ के अधमता और नीचता संसार में कुछ भी नहीं है। परमात्मा के पास एक ठोकर के बराबर भी संसार का कोई भी सामान, कोई भी कोई भी चीज़ अगर हो तो उसे हम मान सकते हैं कि परमात्मा को दें। वस्तु, जैसे कि हमारे घर में एक साहब आये थे, बड़े भारी महान गुरु अपने को बना कर के। और मुझ से कहने लगे कि, 'माताजी, आप को तो घर में .. हैं और आप तो साधारण गृहिणी जैसी रह रही हैं। तो आप कैसे परमात्मा की बात करे? मैंने तो ये त्यागा, मैंने तो वो त्यागा, मैंने तो ये छोड़ा।' मैंने उन से कहा कि, 'वाकई तुम अगर त्यागना जानते हो, तो तुम ये भी जान लो कि इस में से जो भी चीज़ तुम सोचो कि मेरे प्रभु के चरणों के धूल के बराबर भी है, उस के कणों के भी बराबर है, वो उठा के ले जाओ। लेकिन तौलना बराबर।' इधर उधर देखा उन्होंने। ये वो देखा। फिर वो सकपका गयें । मैंने कहा, 'क्यों ? कोई चीज़ नहीं मिली।' कहने लगे, 'इसके बराबर तो कोई भी नहीं।' फिर मैंने कहा उनसे कि, 'तुमने छोड़ा ही क्या ? तुमने क्या छोड़ा, जिसका झंडा सुबह-शाम घुमा कर के और काषाय वस्त्र पहन कर के और ऊपर में बाल मुंडवा कर के दुनिया भर में चिल्लाते फिर रहे हो । क्या छोड़ा तुमने यही पत्थर। ये मिट्टी। असल में सहजयोग इसीलिये घर-गृहस्थी में बैठे ह्ये साधारण लोगों में ही पनपता है। जो अपने झंडे गाड़ते हैं उनमें कभी भी सहजयोग नहीं आ सकता। जो लोग सहज, सरल भाव से करते हैं। परमात्मा के दिये हये ऐश्वर्य में, उनके आनन्द और सुख में सहज से प्रेमपूर्वक रहते हैं, ऐसे ही लोग, ऐसे ही मध्य स्थिति के लोग परमात्मा को पा सकते हैं। गुरु का मतलब अब आपको समझना चाहिये कि, जो लोग काषाय वस्त्र पहन कर के पैसा इकठ्ठा करते हैं, वो लोग कभी भी गुरु नहीं । जिनके पास टूटी हुई सायकलें थीं वो आज इम्पाला में घूम रहे हैं, वो कभी भी गुरु नहीं हो सकते। जो आदमी परमात्मा को पाया हुआ है वो चाहे जमीन पे सो जायें और चाहे वो महलों में सो जाये , आराम से। इसलिये जनक राजा का आपको मैं उदाहरण देती हूँ। जनक राजा के पास में नचिकेता कर के एक बड़ा भारी गया। पहले तो वो शंका से व्याकुल था। उसने अपने गुरु से कहा कि 'ये एक गृहस्थ में हैं, ये राजा है, इसके यहाँ तुम क्यों जाते हो? इसके आगे तुम क्यों झुकते हो? इसके चरण क्यों छूते हो? ये तो गृहस्थी आदमी है।' तो उन्होंने उनको कहा कि, 'तुम राजा जनक के यहाँ जाओ और उनके यहाँ रहो।' आप जानते हैं कि उनको विदेही कहा जाता है। नचिकेता जब उनके साथ जा के रहा। उन्होंने देखा कि उनके यहाँ इतना ऐश्वर्य है, इतना पैसा है, लोग खाना-पीना खा रहे हैं, आराम से रह रहे हैं। राजा सब खाना खाते हैं, घूमते हैं, फिरते हैं । बाल- बच्चे वाले आदमी, कैसे हो सकता है परमात्मा को जानना। दूसरे दिन उन्होंने कहा, 'मैं तो जा रहा हूँ। अभी इसी वक्त मैं चला जा रहा हूँ। मुझे यहाँ रहने का नहीं।' अच्छा, चलो, पहले नहाने तो चलो।' नदी पे नहाने गये। उनको अपने साथ | 4 19731209_Sarvajanik Karyakram_India.pdf-page4.txt Original Transcript : Hindi शरयू नदी पर नहाने ले गये। नदी में नहाते वक्त एकदम से किसी ने आ के बताया कि, 'हे राजा, तेरे तो घर में आग लगी है। राजवाडे में सारी आग लगी हुई है।' राजा जनक ने कहा कि, 'लगने दो। अभी तो मैं ध्यान में हूँ।' हँस के कहा। उसके बाद लोगों ने कहा, 'तुम्हारे सब घर वाले भाग गये। आग तुम्हारी तरफ आ रही है। तो उन्होंने कहा, 'जाने दो, अभी तो मैं ध्यान में हूँ।' उसके बाद उन्होंने कहा कि, 'अरे भाई, आग यहाँ तक आ गयी। तुम्हारे बाहर आभूषण और वस्त्र पड़े हये हैं ये भी चले जायेंगे।' वहाँ जो रखे थे वो भी भाग गये । ये नचिकेत अन्दर जो नहा रहे थे। उनके एक-दो जो कपड़े बाहर पड़े हये थे। उन्होंने सोचा कि 'ये अगर जल जायें तो मेरा क्या हाल होगा?' तो भागे बाहर । उन्होंने अपने वो कपड़े उठा लिये। तो भी ये ध्यान में हैं। जब वो लौट के आये, उनको बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने इनसे पूछा कि, 'राजा, आपको कोई चिंता नहीं है ? क्या आपके कपड़े आदि सब कुछ जल जाते| और फिर आप क्या ऐसे ही घूमते ?' तब उन्होंने कहा कि, 'जो मिथ्या है वो मिटने ही वाला है। वो कोई बताने की जरूरत नहीं। जब तक है रहने दीजिये और नहीं है तो जाने दीजिये।' यही बात सच है। जो मिथ्या को मिथ्या गुरु नहीं समझते हैं, उनके पास आप क्या ढूँढने जा रहे हैं? हमारे ससुराल में एक किस्सा है, कि एक बार ऐसा हुआ कि बाराती आये। अब बारातिओं ने कहा कि, 'आप हमारे लिये कुछ ऐसी व्यवस्था करें कि हम दहीबड़ा खायें ।' बारातिओं के जरा नखरे होते हैं। और जाड़े के दिनों में लोगों ने कहा कि, 'भाई, इस वक्त दहीबड़ा बनाना बहुत मुश्किल हैं। क्योंकि जाड़े में दहीबड़ा शाम के वक्त बनाया नहीं जाता। 'कम से कम तो दहीबड़ा खायें। इसी वक्त लाईये आप दहीबड़ा।' एक बाबाजी वहाँ रहते थे। उनका पता चला। उन्होंने बाबाजी को बुलाया कि, 'भाई, आप किसी तरह इंतजाम करो।' वो कहने लगे, 'मँगवा तो दूँगा, लेकिन उसके बाद मैं रहने वाला नहीं हूँ।' 'अच्छा ठीक है, मँगवा दीजिये।' उन्होंने एक खिड़की बंद कर ली, दूसरी खिड़की बंद कर लीं। दरवाज़ा बंद कर दिया। उसके बाद कहा कि, 'देखो, आ गया आपका दहीबड़ा। खाईये।' वहाँ सब दहीबड़े आ गये। लोगों ने दहीबड़ा खाना शुरू कर दिया। बड़े खुश हुये। बाबाजी भाग गये। रातोरात बाबाजी जान बचा कर भाग गये। लोगों को समझ में नहीं आया कि बाबाजी क्यों भागे? दूसरी दिन सबेरे, | यहाँ माँग लोग होते हैं, एक जाति होती है, जो आती है, खाना - वाना सब बटोर कर ले जाती है। वो आयें और उन्होंने देखा बर्तन वगैरे को, कहने लगे, 'अरे, हमारे कुल्हड उठा के कौन ले के आया? ये तो हमारे कुल्हड थे। कौन उठा के लाये?' वो जो विवाह था, संपन्न तो हुआ था। लड़की बिदा हो गयी| नहीं तो कोई लड़की को भी बिदा न लेता। वजह ये थी की सब लोग बहुत नाराज़ हो गये। कहने लगे कि ये कौन लेकर के आया। हमारे पूर्वजों में, समझ लीजिये हमारे पिता की तरह मैं भी इस चीज़ों में विश्वास ही नहीं करती थी| इसे भानामती कहा जाता था महाराष्ट्र में पहले। ऐसी चीज़ों में कोई भी विश्वास ही नहीं करता था, कि ऊपर से कोई चीज़ चली आयी और उन्होंने दहीबड़े खा लिये। अब क्या परमात्मा कोई धंधा नहीं दहीबड़े खिलाने के सिवाय? आप लोगों को भी सोचना चाहिये कि आप लोगों को दहीबड़े खिलाने का ही उनका एक धंधा बचा हुआ है। जब आप किसी को इतने गुरु बनाते हैं कि वो आपको दो सौ रुपया पकड़वा देते हैं। मैं कहती हूँ कि ऐसे ही इतने दाता लोग अगर हैं तो इस देश का इतना इकोनॉमी प्रॉब्लेम्स ही सॉल्व कर दीजिये। सबको दीजिये। घडियाँ मँगवाते हैं स्वित्झर्लंड से बनी हुई। एक भगवान से बनी हुई घड़ी मँगवा दे तो मान लें। इस चीज़ को सोच लेना चाहिये कि हम 5 19731209_Sarvajanik Karyakram_India.pdf-page5.txt Original Transcript : Hindi लोग किस चीज़ को पाना चाहते हैं? उसी परम को पाना चाहते हैं । पर आप की ही तो खोज इन्हीं जड़ वस्तुओं में हैं। इन्हीं पत्थरों में हैं। इसलिये आप इन लोगों को गुरु मानते हैं। रुपया भी जाता है, पैसा भी जाता है। जब आपका सब पैसा निकल जाता है, तब आप मेरे पास आते हैं। कल ही एक स्त्री आयी थी आप ने देखा था, किस तरह से नाच रही थी, कूद रही थी। मैंने कहा, 'क्यों आयी भाई?' कहने लगी, 'क्या करें अब तो हम ऐसे हो गये।' मैंने कहा, 'चाहे लोग पागल तुम्हें बनायें और पागलखाना मैंने खोल के रखा है। तुम वहाँ क्या खोजने गयी थी ? क्या नाचने-कूदने से परमात्मा मिल सकता है?' हमारे मानव के जितने भी कायदे कानून बने हैं, उस में उन लोगों को इसका अंदाज भी नहीं है कि मनुष्य कितना दृढ़ित हो गया है। जिन्होंने भी बनाये हैं वो बहुत शालीन लोग थे। उन्होंने उस दृढ़ता को और उस धृष्टता को पहचाना ही नहीं कि मनुष्य अन्दर से कितने गन्दे कामों में फँसा हुआ है। अगर वो लोग जान जाये तो नये कायदे बनाने पड़ेंगे, इन लोगों को सब को पकडने के लिये| ईसा मसीह को तो इन्होंने उठा कर सूली पर चढ़ा लिया। वो आसान था। लेकिन इन लोगों को तो कोई पकड़ ही नहीं पाता। जो रात-दिन आपसे रुपया खसोट कर के और आप लोगों का सर्वनाश करने पर लगे हुये हैं। और कल आपके बच्चों को पागलखाने में भेजने के लिये तैय्यार बैठे हये हैं। कभी आप लोग इधर भी आँख उठा कर के देखिये और सोचिये कि ये क्या है? परमात्मा के नाम पर जड़ वस्तुओं को बाँटना कहाँ कि भल-मानसियत ! आप भी क्या कभी सोचते नहीं? कलयुग में तो मैं सोचती हूँ कि मनुष्य पर कितनी प्रगल्भ बुद्धि, इतनी उसके अन्दर ....क्या वो सारी अपनी बुद्धि को बेच खाता है, कि वो समझता नहीं कि किस तरह का मेस्मरिज्म है और इनटाइसमेंट हैं। इसकी वजह से हम ऐसे पागल जैसे उसके पीछे भाग रहे हैं और अपने अन्दर झूठे, बिल्कुल मिथ्या, निष्पाप अन्दर में कर के की बड़े शान्ति में बैठे हुये है। अपने से भी भुलावा कर रहे हैं और दूसरों से भी भुलावा कर रहे हैं। जब आपको रियलाइजेशन हो जाता है , तब बहुत दूर जाने की, बहुत पढ़ने की जरूरत नहीं है। आप समझ सकते हैं कि आप रियलाइज्ड हैं। इसलिये आप में एक जगह अन्दर से शांत है। मैं देखती हूँ कि इतने लोगों के गुरु हैं और तीस-तीस, चालीस-चालीस साल में हार्ट अॅटैक आ कर के लोग मर हूँ। जाये। असम्भव की बात हैं कि अगर आप में रियलाइजेशन का जरासा भी तत्त्व एक बार जाग उठा है, तो हार्ट अॅटैक तो क्या कोई अॅक्सिडेंट होना भी मुश्किल है। ऐसे ऐसे उदाहरण हमारे अन्दर है। एक छोटा सा लड़का, अभी परसों बता रहे थे कि ट्रेन से आ रहा था और ट्रेन पूरी उलट गयी। जिस डिब्बे में वो बच्चा था, उसमें से एक भी आदमी को चोट भी नहीं आयी । आपके उपर देवता मंडराना चाहिये। अगर दिव्य नहीं उतर सकता तो ऐसा रियलाइजेशन क्या ? अब हमारा ही लो, आप जानते हैं कि कितने ही पार ह्ये हैं। कैन्सर तक ठीक करते हैं। कोई विशेष बात नहीं। कोई विशेष हमारे ख्याल से बात नहीं। सिर्फ यही है कि इसमें इनको इंटरेस्ट नहीं है, किसी को क्युअर करने में । इनको रियलाइजेशन में ही इंटरेस्ट है। क्योंकि जो आनन्द आप ने पाया है, वही आप चाहते हैं कि सब पायें। सहज में ही है। अगर आप के पास रुपया पैसा है तो आप चाहते हैं कि रुपया-पैसा खर्च करें। लोगों को खिलायें , पिलायें। ऐसे ही रियलाइज्ड सोल ही चाहेगा मन में कि दूसरों की भी जागृति करें और पार करें और कर सकते हैं। अगर आप के अन्दर लाइट आयी है उसके लिये कसम लेने की कोई जरूरत नहीं है। कस्तुरी का अगर सुगन्ध आ रहा हैं तो उसके लिये कोई आप को 19731209_Sarvajanik Karyakram_India.pdf-page6.txt Original Transcript : Hindi कसम ले कर कहने की जरूरत नहीं है कि, यहाँ पे कस्तुरी का सुगन्ध हैं। लेकिन कस्तुरी की खोज है कैसे ? ये पहले अन्दर सोच लीजिये। नहीं तो ऐसे चक्करों में घूमने की कोई जरूरत नहीं है । एक साइड में तो हमारे ये लोग हैं, जो कि हमारे सबकॉन्शस से खेल रहे हैं। हमारे जड़ चेतन से, हमारे पास्ट से खेल रहे हैं। मैं ऐसे भी लोगों को जानती हैँ इस खोज में मैंने बहुत गुरु घंटालों को देखा और सब के मैं हथखण्डे जानती हूँ कि ये क्या क्या दशा करते हैं और किस तरह से जन्मजन्मांतर के लिये आपकी कुण्डलिनियों का सत्यानाश करते हैं। मैं बहुत से ऐसे लोगों को जानती हूँ, जो आपको पिछले जन्म की बातें बताते हैं। इसी से आप अभिभूत हो जाते हैं। किसी ने कह दिया कि मैं तुम्हारा पति हूँ। एक थी, आयीं मेरे पास और कहने लगीं, 'माताजी, मैंने उनको अपना सर्वस्व दे दिया।' मैंने कहा, 'क्यों? क्यों दिया तुमने?' 'वो कह रहे थे कि मैं तुम्हारा पति हूँ। मैंने कहा, 'तुम्हारा पति ! बड़ी पातिव्रत्य हो । अगर ऐसा ही पातिव्रत्य हैं तो जो मर गया पति उसके लिये तो मरी जा रही हो और जो तुम्हारा पति आज जीवित है उसका क्या हाल है? उसके प्रति कोई पातिव्रत्य नहीं? और ये जो एक पैसा खाऊ यहाँ बैठा हुआ है उसको तुमने सारे जेवर दे दिये। क्योंकि उसने तुमसे कहा कि, ये तुम्हारा पति है।' फिर कोई कह रहे थे, 'ये साहब हम से कह रहे थे कि, हम भगवान के अवतार हैं। हम परमेश्वर हैं।' अरे कोई कहने के लिये अपने देश में किसी को क्या लगता है! झूठ बोलने में तो हम लोग पक्के माहिर है। कोई किसी से झूठ बोल दीजिये, इसको साइकोलॉजी में सिग्मॉइड पर्सनॅलिटी कहते हैं। आप पढ़े हैं साइकोलॉजी तो आप समझ सकते हैं, कि साइकोलॉजिस्ट ने इसका पता लगाया हैं। नहीं लगाया ऐसी बात नहीं। खड़े हो कर के जो चाहे अंटसंट बकने लग जाते हैं और लोग उस पे विश्वास करने लग गये। ऐसा बायबल में भी कहा गया है, कि ऐसे बहुत से संसार में आये। सम्भल के रहिये। कहने लग गये, 'हम भगवान हैं!' अरे, भगवान हैं तो उसी को शक्ति भी तो होती है। एक महाशय जी मुझ से कहने लगे, 'मैंने उन से कहा कि आपके पास इतनी औरतों का जमाघट क्यों भाई? आप दरवाजे बंद कर के ये क्या कर रहे हैं?' भगवान के नाम पर ये काम क्या करते हैं?' किसी स्त्री पर उन्होंने बहुत अत्याचार किया था। मुझे आ कर प्राइवेटली बताती। मैंने कहा कि, 'तुम कोर्ट में जा कर बताओ।' ये आदमी पकड़ा गया। कहने लगी, 'हम कोर्ट में कैसे बतायें? हमारे ऊपर आफ़त आ जायेगी। हमारी इज्जत हैं। हमारी फॅमिली हैं।' तो मैंने कहा, 'अगर तुम कोर्ट में नहीं बता सकती, तो इसका कैसे पार हो।' उस महाशय से जा कर जब मैंने कहा कि, 'तुम ये क्या कर रहे हो? क्यों ऐसा पाप ढो रहे हो? क्या तुमको इससे मिलेगा, परमात्मा के नाम।' कहने लगा, 'तुम्हे नहीं मालूम मैं श्रीकृष्ण हूँ। मैंने कहा वाह, भाई वाह! शकल तो आपकी भूत जैसी और आप श्रीकृष्ण बने। आज श्रीकृष्ण कहा, 'श्रीकृष्ण को आप कितना जानते हैं?' जिसने पाँच साल की उम्र में कालिया का मर्दन किया था उसके सर पे कैसे ह्ये? मैंने के। मैं दाढी आपकी नोचती हूैँ तो उठ नहीं सकेंगे आप!' मज़ाक ही मैंने कहा दिया। बाद में सुना किसी ने चढ़ उनकी दाढ़ी आधा घण्टा पकड़ी थी वो हिलते रहे ऐसे ऐसे। मैंने तो यूं ही कह दिया। ऐसे श्रीकृष्ण पैदा होने लग जाये। दूसरे साहब कहने लगे कि, 'मैं औरतों को इसलिये नग्न करता हूँ कि श्रीकृष्ण ने औरतों को नग्न किया । बताईये कहाँ कि बेवकूफ़ी की बात है। श्रीकृष्ण पाँच साल की उमर में बच्चों जैसी उनकी लीला थी। औरतों के साथ में उनको क्या.... पाँच साल का बच्चा! वैसे बहुत गहन अर्थ है। वो तो सहजयोग लीला कर रहे थे। पाँच 19731209_Sarvajanik Karyakram_India.pdf-page7.txt Original Transcript : Hindi साल के बच्चे के लिये कौन बड़ा और कौन छोटा! पाँच साल के भी नहीं उससे भी छोटे थे। तो मैंने उनसे कहा कि, 'अगर यही बात थी तो काहे के लिये वो द्वारिका में बैठे हये वो द्रौपदी के वस्त्रहरण के वक्त में दौडे गये थे वहाँ। शंख-चक्र-गदा-पद्म, गरुड लयी सुधारें। क्यों सुधारें? क्यों सुधारे थे, अगर उनको रस्त्र की पवित्रता का कोई | ख्याल नहीं था। ये आप जवाब दीजिये।' कहाँ तो वो एक उँगली पर गुरु को पकड़ने वाले वो श्रीकृष्ण और आप संहारे गली में और बज़ार में मिलते हैं जहाँ जाईये वहाँ, एक श्रीकृष्ण, एक शिवजी भगवान । कहाँ श्री शिवजी भगवान, कहाँ श्रीकृष्ण। कुछ आप की बुद्धि बच गयी है या नहीं? मुझे कभी कभी बड़ा आश्चर्य होता है। मनुष्य के इतनी बुद्धि की प्रगल्भता में पहुँच गया जिसको परमात्मा ने सारे ही बुद्धि के आवरण खोल दिये। ऐसे मनुष्य बुद्धि में धर्म के मामले में इतना पड़दा क्यों? अपने ही देश में नहीं इसको तो बात ही नहीं , परदेश में भी इस कदर अंध:कार! एक वहाँ योगी जी, पहुँचे हये हैं। उनका शिष्य हमसे मिलने आया । वो हमारे सामने आये। देखते हैं क्या उनका आज्ञा चक्र और नाभि चक्र दोनों को गोल घूमा दिया और वो भजन गा रहे हैं। उलटा घूमाने का मतलब हैं कि आदमी जो पागल होता है, जब आप पार हो जाये तो देखियेगा, कि जब आदमी पागल हो जाता है तब उनका आज्ञा चक्र और नाभि चक्र उलटा घूमता है। ये सब प्रेतसिद्धता, स्मशान सिद्धता, हमारे देश में, भारतवर्ष में पुराने जमाने से चली आयी है। उसके बारे हमारे यहाँ पे जानता नहीं ऐसी बात नहीं है, लेकिन उसकी ओर ये जरुर है कि आधुनिक शिक्षण व्यवस्था में इधर ध्यान नहीं है। ये जो देवियाँ वरगैरे आती है किसी के बदन में और हम लोग कुंकु लगाने को जाते हैं। उनके अन्दर में भूत आते हैं। हमें समझ में क्यों नहीं आया । ये सब प्रेत विद्या और स्मशान विद्या | है। इसका एक बड़ा भारी साइन्स है। इस पर मैं कभी चाहे तो बताऊंगी आपको। आज दत्त महाराज के चरणों में खड़ी हूँ। इसको भी जान लेना चाहिये । ये सब महामूर्खता के लक्षण हैं। वो हम ऐसे दूसरों के हाथों में अपने को बेच दें। कम से कम अपनी बुद्धि तो सही रखें। थोड़ा सा झटक के सोचे। जब कभी भाषण में आप जाये, तो आप सोचें कि आदमी बोल क्या रहा है? और कर क्या रहा है? इसका बोलना और करना इस में अन्तर, वो कभी भी हो ही नहीं सकता। इसको गुरु आप समझ लीजिये। अभी हम कहे कि हम ऐसे हैं, वैसे हैं। कल हम लपके सांसारिक चीज़ों में, हम कभी भी वैसे हो नहीं सकते। संसार कोई व्यर्थ की चीज़़ नहीं है । लेकिन साक्षित्व तो कम से कम गुरुओं में आना चाहिये। कम से कम। कुण्डलिनी के बारे में भी बहुत गुरुओं ने लिख लिया। जिनके बारे में आपको मुझे बताना है। कल भी मैंने बताया था, कि भगवान के पास में कोई घड़ी नहीं है। जो वो कह दें कि, 'चार बजे मैं तुम्हारी कुण्डलिनी जागृत करता हूँ।' ये सब भूतों की व्यवस्था है। इस पर मैं आपको एक बड़ा सा उदाहरण देती हूँ। डॉ.लाइन कर के एक भारी डॉक्टर लंडन में रहता है। उसने कुछ बहत शोध किये थे । वो चाहते थे कि लोगों को उसे शुअरटी आयें। बड़ा लेकिन अकस्मात उनकी एक अॅक्सिडेंट में मृत्यु हो गयी। इसके कारण वो अपना जो शोध था, लोगों को बताने का, तो उन्होंने जब उनकी मृत्यु हो गयी, हम जब मरते हैं तो पूरे नहीं मरते हैं, थोड़ा सा हिस्सा गिर जाता है, बाकी सुक्ष्म शरीर जीवित है, तो उन्होंने उस सुक्ष्म शरीर में ये सोचा कि चलो किसी के अन्दर घुस कर ही, प्रवेश कर के देखें। तो विएतनाम में एक सोल्जर लड़ रहा था, उसके शरीर में उसने प्रवेश किया। और उसे कहा कि, 'तुम मेरे 8. 19731209_Sarvajanik Karyakram_India.pdf-page8.txt Original Transcript : Hindi लड़के के पास चलो। और उसे ऐसी ऐसी बात बताओ।' अब ये सोचिये कि डॉक्टर लाइन को ऐसा ही करना था तो उसके लड़के के अन्दर क्यों नहीं घूसा ? वो तो जानते थे, कि इससे कोई परिणाम नहीं । तो उन्होंने कहा कि, 'अच्छा तुम मेरे लड़के से जा के सारी बात बताओ। जब ये सोल्जर उस लड़के के पास गया और उसे जा कर बताया तो वो इस बात को मान गया। उसने कहा कि, 'हाँ, ये सब बातें मेरे पिताजी के सिवाय और किसी को मालूम नहीं।' उसने कहा, 'चलो, तुम क्लिनिक खोलो।' उन्होंने एक बड़ा भारी ऑर्गनाइझेशन बनाया। जिसके वो लोगों को ठीक करें। अब डॉ. लाइन के साथ बहुत से और डॉक्टर इनके साथ जुट गये। वो भी ये कार्य तहत करते थे। अभी तक वो हो रहा है कार्य। वो आपसे बताते हैं कि आपको किसी तरह की तकलीफ़ है, शिकायत है, आपको बताते हैं, अच्छा पाँच बजे शाम को बराबर इस वक्त आपके अन्दर ठीक हो। कोई न कोई अन्दर व्यक्ति घुस कर के आप के साइकोलॉजी में जिसको हम सुपर इगो कहते हैं, इसके अन्दर घुस के और इस कार्य को करते हैं। एक भूत निकाल के दूसरा भूत बिठाया। अगर आप शराबी होंगे तो शराब ठीक हो जायेगा लेकिन क्रोध आने इन लोगों का कार्य है। पर बिचारे सीधे हैं। वो लोग कम से कम ये कहते हैं कि हम स्पिरीट का काम करते हैं। वो ये नहीं कहते हैं कि हम भगवान का कार्य करते हैं । लेकिन अपने देश में तो लोग पक्के भूत नहीं, लगेगा । ये | राक्षसों का काम करते हैं और उसको भगवान का नाम देते हैं। ऐसे लोग अगर किसी को थोड़ा सा ठीक भी कर ले, तो इससे क्या फायदा? कुण्डलिनी जहाँ खराब हुई, अपने माँ को जहाँ ...हैं ऐसी जगह जाने की कोई जरूरत नहीं। आज नहीं कल आप लोग जरूर पार हो जाईयेगा। लेकिन गलत रास्ते पर मत जाईये। एक बार आपकी कुण्डलिनी खराब हो जायेगी, तो मैं उसे कुछ भी नहीं कर सकती। सारा ही कार्य खत्म हो जायेगा। जिन जिनकी कुण्डलिनियाँ खराब हो गयी है, आप लोग जानते हैं, आप में से बहुत लोग पार हये हैं, कितनी तकलीफ़ें हमने उठायी। कुछ कुछ लोगों पर तो हाथ रखते वक्त इन लोगों के हाथ में बड़े बड़े ब्लिस्टर्स आते हैं। बहुत बड़े बड़े ब्लिस्टर्स आते हैं। और वो जब मेरी ओर हाथ करते हैं, उनको भी कभी कभी थोड़ा थोड़ा ब्लिस्टर्स जैसा आ जाता है। पर जलता तो बहुतों का हाथ है। मेरे पास एकदम ठण्डी ठण्डी हवा है, लेकिन उनके हाथ जल रहे हैं। क्योंकि मैं चाह रही हूँ कि उनकी सत्ता को स्थापना दूँ और उनके अन्दर तो कोई और ही सत्ता बैठी है। ऐसे गुरुओं से बच के रहिये। क्योंकि कायदा इसे रोक नहीं सकता। सीधी तरह जिसकी रोकथाम नहीं, इसे अपने बुद्धि से सोचिये, कि सच्चा गुरु कौन हैं? वही जो आपको परम दे। इस पर अभी एक औरत ने मुझ से सवाल पूछा था। बहुत मौके का सवाल था। उसने मुझे पूछा कि, 'क्या आपने और भी कोई रियलाइज्ड सोल दुनिया में देखे हैं? जो कि आपके पास आये बगैर ही।' ऐसे तो बहुत हो चुके और अभी भी हैं । इसी कारण मैं अपने बहुत शिष्यों को लेकर कोल्हापूर से दूर पच्चीस मील दूरी पर एक जंगल में, पहाड़ी के ऊपर सात मिल दूरी पर गगनगड़ में आ गयी, उनका बहुत बड़ा उत्सव है। इसके लिये मेरी सारी सदिच्छा है। वहाँ पर एक बड़ा भारी गुरु हैं। मैं इनको ले गयी। मैंने कहा तुम ऐसे हाथ रखो बस्। 'हाथ के सहारे इतने वाइब्रेशन्स आ रहे हैं माँ!' क्यों उस जंगल में चलें? ये भी सोचने की बात हैं। जितने भी बड़े बड़े पहुँचे हये लोग होते हैं, जंगल में रहते हैं। आपने नित्यानंद जी के लिये कहा । जो कि असल में बहुत बड़े गुरु हैं। वो अगर कोई भी | 19731209_Sarvajanik Karyakram_India.pdf-page9.txt Original Transcript : Hindi आता था तो पत्थर मारते थे और कहते थे , 'भाग जाओ यहाँ से। निकल जाओ।' हमारे नागपूर में ताजुद्दीन बाबा थे। उनके लिये भी लोग ऐसा कहते थे। वो तो जंगल में ही रहते थे । अब वहाँ आबादी हो गयी। क्यों ये लोग जंगल में भाग जाते हैं? इसके दो-चार कारण हैं। अभी आपने देखा, यहाँ छोटे बच्चे बैठे थे । उनके हाथ जल रहे थे। इसी तरह से उनके बदन जलने लगते हैं। बहुत से साधु तो बेचारे पानी में ही रहते हैं। क्योंकि आप लोगों की जो साइकी हैं, सुपर इगो हैं, उनमें बैठे हुये भूत इनको जलाने के लिये लगे हैं। उन भक्तों को सताने के लिये लगे हैं। इसलिये वो जंगल में भाग खड़े होते हैं। क्योंकि आप को तो पता नहीं आप कर क्या रहे हैं? आपके वाइब्रेशन्स आपको समझ कहाँ आते हैं? इसलिये बेचारे जंगलों में जा कर के बैठ हये हैं कि बाबा, बचाओ इन लोगों से। उनका तारण-हारण वो कहाँ से करे! गगनगड़ के महाराज का ही देखिये । उन्होंने बहतों को तो ठीक किये। लेकिन क्या हैं उनकी उंगलियाँ टेलिस्कोप के जैसे अन्दर चली गयीं| पाँव की उंगलियाँ भी ऐसे अन्दर चली गयी। बेचारे पेड़ पर या सीढ़ी पर सवारी करते हैं। इसके अलावा इधर से उधर नहीं जाते। लेकिन जब मैं उनके पास पहुँची। जो लोग मेरे साथ थे उन्होंने भी देखा। उन्होंने फौरन मुझे पहचाना। कोई शंका नहीं। उन्होंने आज तक मुझे नहीं देखा है। लेकिन बहुत सालों से मेरे बारे में वो जानते ही थे। उम्र में भी मेरे से बड़े हैं। कहने लगे, 'बहुत सालों से में आपका इंतजार कर रहा था माँ। आज हमारा भाग्य कि आप पधारे।' वो नाथपंथी हैं। और बड़े पहुँचे हुये। ऐसे ही मैं हिमालय पर भी गयी थी। वहाँ पर भी मुझे मिले। ऐसे ही हरिद्वार में एक-दो हैं बहुत .... मौका है। मैं तुमको बताऊँगी की अपनी शक्ति को कैसे बचाना है और किस तरह से इन लोगों का प्रहार वापस लौटाना है। मैं बैठती हूँ। तुम आओ तो सही। सब को मैं ठीक कर दूं।' बहुतों ने कहा, 'माँ आयेंगे, जरूर आयेंगे।' रहते हैं। मैंने उनसे कहा, 'बाहर आने का लेकिन हिम्मत दिखती नहीं बेचारों की। क्योंकि इनके हाथ-पैर तोड़ दिये। इनके बदन में छाले डाल दिये। उनको जला दिया। राक्षसों के साथ। समझ लीजिये दस राक्षस और छ: राक्षसिनी अभी तक मैं जोड़ पायी हूँ। जन्म ले कर इस कलियुग में आयी। आजकल के जमाने में समझ लीजिये अगर रावण आ जाये, तो अपने को कहने नहीं वाला है कि मैं रावण हूँ। वो तो अपने को भगवान ही कहेगा। अगर रावण कहे तो अभी कैद में बंद ना हो जाये। राक्षसों की भी पहचान हैं वो भी मैं आपको बता देती हूँ। आप देखिये। आपको फायदा है। जिस आदमी की आँख बिल्ली के जैसे, आप बिल्ली की आँख पहले देखिये तब आपको समझ में आयेगा। बिल्ली की आँख, जैसे उसके अन्दर की पुतली होती है, आँख देखते देखते एकदम छोटी हो जाती है, भूरी हो जाती है । ऐसे ही राक्षसों की आँख होती है। में सब कुछ जानती हूँ, अच्छे से। हर एक जन्म में मैंने इन लोगों को देखा हुआ है। इनकी आँख से आप पहचान सकते हैं कि ये लोग राक्षस हैं, इनकी आँख की पुतली एकदम छोटी हो कर के.... । इनका क्या ? कहने को वे भगवान कहे और कुछ कहे, राक्षस ही है और इन्होंने बहुत सी सिद्धियाँ प्राप्त कर ली हैं। ये हमारे भोला शंकर जी का कार्य हैं, क्या करें ? उन्होंने बहुत सारी सिद्धियाँ प्राप्त कर लीं । जैसे रावण को एक सिद्धि थी, कि जब वो बोलते थे और भाषण देते थे तो नाभि चक्र पे वो ऐसे कुछ काम कर जाते थे कि वहाँ पर एक एक भूत बैठ जायें । हजारों लोग अभिभूत हो कर के उनके पैरों को छूते थे। यहाँ तक कि राम से लड़ने के लिये कोई तैयार नहीं था। उन्होंने सब को तैयार किया। इसी तरह महिषासुर की भी थी । सारे ही असुरों की अपनी अपनी 10 19731209_Sarvajanik Karyakram_India.pdf-page10.txt Original Transcript : Hindi सिद्धियाँ थीं और इसी सिद्धियों के कारण वो लोग हमेशा भ्रमण करते रहे। प्रकाश को दबाते रहे और अंधेरा बढ़ता लोगों के गया। आज कलयुग में बराबरी हैं। सारी बराबरी हैं और आप सोच रहे हैं कि मेरे दो ही हाथ हैं। आप लिये, आप ही लोगों का कार्य है, आप को आश्चर्य होगा कि देवता भी एक तरफ बैठे ह्ये हैं और राक्षस भी एक तरफ बैठे हैं। घमासान युद्ध चल रहा है। वो परेशानियाँ क्या आप सोचते हैं, आप के करने की वजह से ? बिल्कुल भी नहीं। ये दुष्ट और राक्षस बैठ कर के प्रेत योनियों के सारे कार्य करा के आपको त्रस्त कर रहे हैं। किसी तरह से आप दौड़ कर उनके ही चरणों में जायें। ये सब इन्हीं का कार्य है। अगर इसी को हटाना है तो अपने ही अन्दर में ज्योत जलानी है। अगर इस को प्रकाशित करना है, तो सब को अपने अन्दर एक एक दीप जलायें। आप स्वयं एक दीप है और आश्चर्य तो ये है कि इस वक्त परमात्मा भी यही चाहता है कि मनुष्य ही कार्य करें। मनुष्य ही वो परमात्मा स्वरूप हो जायें और जिसको हम अति मानव कहते हैं, जिसको हम सुपर मॅन कहते हैं, इसकी स्थापना हो। एक नया डाइमेंशन आपके अन्दर आने वाला है। इसको लेना सीखो, इसको पाना सीखो। बुद्धि के कसौटी पर अभी इसे उतारा नहीं जा सकता। क्योंकि अगर बुद्धि से आप समझना चाहें तो आपको मेरा सिर्फ हाथ ही दिखायी दे रहा है, इसकी अन्दर से बहने वाली अव्यक्त धारायें नहीं दिखायी देगी। जो लोग बहुत बड़े पंडित हैं वो लोग चाहे तो कबीरदास को पढ़ें, नानक जी को पढ़ें, हो सके तो आदि शंकराचार्य को पढ़ें। वो तो सब से बढ़िया हैं। आदि शंकराचार्य को अगर पढ़े तो समझ सकते हैं मैं कि किस चैतन्य लहरियों की बातें कर रही हूँ। कुण्डलिनी पर अभी तक मुझे कोई भी ऐसा दिखायी नहीं दिया, जिसे व्यवस्थित रूप से कुछ समझाऊँ। थोड़ा थोड़ा ज्ञान हो जाने से ही कभी कभी बड़ा भारी भयंकर अनर्थ हो जाता है । ऐसा ही अनर्थ कुण्डलिनी के बारे में भी आज तक होता रहा ही है। नहीं तो इस तरह की विचित्र बातें न जाने उस समय किन लोगों ने लिखी हैं। लेकिन तो भी मनुष्य की द्रष्टा स्थिति इतनी ऊँची हैं, इतनी ऊँची हैं, जैसे देवी भागवत आप पढ़े। मार्कण्डेय स्वामी की सप्तशती आप पढ़े आपको आश्चर्य होगा कि कितनी गहराई से, कितने छोटे छोटे डिटेल्स में उन्होंने इस चीज़ को जाना। असल में जब तक आप का रियलाइजेशन नहीं होता, तब तक सभी कुछ करना व्यर्थ है। कृष्ण ने भी यही कहा है। कृष्ण ने भी यही कहा था कि पहले उसे अन्दर ही पा लो। लेकिन समझने वालों ने समझा नहीं। वो कहते हैं से कि अन्दर पा लो तुम कहते हो कि बाहर ले जाओ। इनका मतलब था कि तुम साक्षी हो। साक्ष होने के बाद तुम हो रहा है, अकर्म में चला जा रहा है। आप कुछ करते ही नहीं। इगो ही खत्म हो गया। वो सुपर इगो ही खत्म हो गया जो कर्ता है, करने ही वाला चीज़ जायेगा । वो कह रहे थे तो माना नहीं। वो डिप्लोमॅट थे, राजकारणी थे। कृष्ण का भी अपना एक तरह का गुरुत्व है। उनका गुरुत्व ही बड़ा मजेदार है। बड़े भारी राजकारणी थे। इसको मैं कहती थी कि अॅबसल्यूट प्युअर पॉलिटिशियन। ऐसा बड़ा पॉलिटिशियन था वो। और वो सब को जानता था कि इन महामूर्खों को ठीक करने का यही तरीका है। जिस वक्त में एक बच्चा है वो अपने घोड़े को गाड़ी के पीछे बाँध कर के हाँक रहा है। तो बाप आ कर के कहता है, 'चलने दो घोड़ा। ऐसे ही चलने दो, हाँकते रहो , हाँकते रहो । पहुँच जाओगे।' फिर बच्चा जब हार कर के सोचता है, 'अरे घोड़ा तो चल ही नहीं रहा।' तब उसको समझ में आता है, कि घोड़े को आगे करना चाहिये, तब हाँकना चाहिये। इसलिये उन्होंने कहा कि, 'अच्छा तुम कर्मयोग कर।' अब 11 19731209_Sarvajanik Karyakram_India.pdf-page11.txt Original Transcript : Hindi देखिये इसमें डिप्लोमसी कितनी! फिर ऐसा भी गुरु मिलना बड़ा कठिन है! ऐसा भी गुरु है कि इसके लिये बहुत ही बुद्धि की तीक्ष्णता और प्रखरता चाहिये। आज तक आपको किसी ने ये बात नहीं बतायी होगी। आज बताऊँगी । आप सुन लीजिये। उन्होंने कहा कि 'ऐसा तुम कर्म करो। लेकिन कर्म का जो फल है वो परमात्मा पर छोड़ो।' वो हो | ही नहीं सकता, बिल्कुल अॅबसर्ड कंडिशन। जब आप किसी चीज़ को कर रहे हैं और जान रहे हैं, कर रहे हैं। आप इस को किसी और पे कैसे छोड़ दें? घोड़ा पीछे कर के ही हाँकने को कह रहे हैं। दूसरा उन्होंने कहा कि, 'तुम भक्ति करो।' देखिये , इसमें भी देखिये। बड़ा सुन्दर है। तुम अनन्य भक्ति करो । जब दुसरा कोई नहीं रहेगा तो भक्ति कैसे होने वाली? मतलब ये कि मिलन हो गया तो भक्ति किस की करें? उन्होंने कहा, 'पुष्पम्, फलम्, तोयम्' जो कुछ भी तुम मुझे दो मैं ले लूंगा। लेकिन देने के वक्त उन्होंने यही कहा है कि 'तुम अनन्य भक्ति करो ।' अॅबसर्ड बात है। क्योंकि अॅबसर्डिटी पर ही आदमी का सर चकरायेगा। और तभी वो ठिकाने पे आयेगा। वो सोच भी नहीं सकते थे कि ऐसे आदमी को अकल आने वाली है। पर मैं तो माँ हँ और माँ चाहे वो बात कहनी भी पड़े तो भी कह डालेगी | कि बेटे ऐसा नहीं। ऐसा नहीं मानो जब तक हो सकेगा तब तक कहेगी। गला फाड़ फाड़ कर अपने बच्चे से कहेगी। माँ का हृदय और होता है। उसे डिप्लोमसी नहीं खेली जाती बहुत देर। बहुत हो गया। बहुत परेशान। अब जरूरत है इस चीज़ को करने की और हो रहा है। आप लोग भी इस चीज़ को पा रहे हैं जिन्होंने पाया है। जिन्होंने जाना हैं कल भी यहाँ पर प्रोग्रॅम है, जरूर आयें। जिन्होंने नहीं पाया है वो भी आयें। हमारे यहाँ और भी जगह, भारतीय विद्याभवन में हम लोग हमेशा के लिये चाह रहे थे कि ऐसी जगह बनें कि लोग आते रहें। यहाँ पर बहुत से लोग ऐसे हैं जो पार हो गये हैं। जागृति तो आप पार होते ही दे सकते हैं इन लोगों को। चक्रों के बारे में बहुत जानते हैं, बहुत ज्ञानी हो गये हैं। और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पार नहीं करा सकते। हिन्दुस्तान की ये गरिमा हैं कि ये देश, हमारी योगभूमि है। सारे संसार के देशों से भी ऊँचा अपना देश। इस देश के वाइब्रेशन्स इतने हायेस्ट , इसमें कोई शंका नहीं। और सारे ही संसार की रीढ़ की हड्डी में अपना देश है और इसी में कुण्डलिनी का स्थान है । जो सारे ही संसार को एक दिन ठीक कर सकती है। पर अभी तो सारे ही चक्र हमारे पकड़े हये हैं। कुण्डलिनी की गति ही मुश्किल हो रही है। आप अगर अपने अपने चक्र छुडा ले, तो हो सकता है इसी देश में से ही वो संदेश बाहर जाये, जिससे की सारा संसार बदल कर के एक दूसरे रास्ते पर आ कर खड़ा होगा। यहाँ सत्ययुग का ही आवाहन है और भी आने वाला है। ये सत्ययुग के आने की बात, लेकिन ये अभी आपके स्वतंत्रता और आपकी सत्ता पे छोड़ा गया है कि आप चाहें तो इसे लें या संहार किया जाये। ऐसे ही कैन्सर जैसी और युद्ध जैसी बातें, ये सब हमारे सत्ययुग संसार को खत्म करेगी। अगर आप लोग चाहे तो इसे ले सकते हैं और संसार को उजियारा में डाल सकते हैं। और नहीं तो अंध:कार आ कर परमात्मा चाहे हजारो सृष्टियाँ बना सकता है। एक एक्स्परिमेंट फेल हो गया। ऐसा ही वो सोचेगा। अभी आप की ही तुलना इसे देखना है कि कितने लोग अपने को लगाते हैं । और बहुत लोगों ने इस प्रेम बहुत बहुत आप सब का धन्यवाद! तीन दिन का सेमिनार बहुत प्रेमपूर्वक हुआ स्वीकार किया। इसलिये एक माँ के नाते मैं सबका धन्यवाद मानती हूँ। वैसे ही हमारे बहुत से बच्चों ने रात-दिन मेहनत कर के और औरों को तारण करने के लिये इतनी मेहनत की है और इसी तरह से करते रहें । ऐसे ही उनको आशीर्वाद दे कर और आप सब को मेरे प्रेम का आशीर्वाद दे कर मैं आप से बिदा लेती हूँ। 12